उषाबेन तड़वी

धरमपुरी पुनर्वास स्थल, गुजरात

वर्ष 2009 और 2023 में किए गए साक्षात्कार

ऊषाबेन तड़वी, सरदार सरोवर बांध के कारण जलमग्न होने वाले 245 गाँवों में से पहले गाँव, वडगाम की एक परियोजना-प्रभावित आदिवासी महिला हैं। ऊषाबेन और उनके परिवार को वर्ष 1994 में अपने डूब-प्रभावित गाँव, वडगाम से जबरन विस्थापित कर दिया गया था, और गुजरात के  डभोई (वड़ोदरा) के नज़दीक स्थित धरमपुरी पुनर्वास स्थल पर बसाया गया था। यहाँ साझा की जा रही दो संक्षिप्त क्लिप, वर्ष 2009 (वडगाम से विस्थापन के 14-15 सालों बाद) और दोबारा वर्ष 2023 में (वडगाम से विस्थापन के 28 सालों बाद) किए गए साक्षात्कारों से ली गई हैं।     

वर्ष 2009 में किए गए साक्षात्कार से ली गई पहली क्लिप में ऊषाबेन नर्मदा घाटी की महिलाओं की, सरदार सरोवर परियोजना के आने से पहले की और उसके बाद की ज़िन्दगियों का ब्यौरा हमारे सामने रखती हैं।

वर्ष 2023 में किए गए साक्षात्कार से ली गई दूसरी क्लिप में ऊषाबेन बताती हैं कि 2009 में किए गए पहले साक्षात्कार के बाद बीते 14 सालों में पुनर्वास स्थल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

वडगाम सरदार सरोवर बाँध के बहुत नज़दीक स्थित था और डूब से प्रभावित होने वाला पहला गाँव था। ऊषाबेन इस क्लिप में जबरन विस्थापन के गाँव की आदिवासी महिलाओं पर होने वाले प्रभावों का ब्यौरा देती हैं। वर्ष 1994 में विस्थापित की गई ऊषाबेन, वर्ष 2009 में किए गए अपने पहले साक्षात्कार में समझाती हैं कि किस तरह उन्हें गुजरात सरकार द्वारा स्थापित किए गए पुनर्वास स्थल पर कभी भी घर-जैसा महसूस नहीं हुआ। ऐसा ऊषाबेन अपने पहले साक्षात्कार के समय वर्ष 2009 में कह रही हैं, यानी पुनर्वास स्थल पर 14-15 वर्ष गुज़ारने के बाद। वे ऐसा गुजरात सरकार के उन दावों के संदर्भ में कहती हैं जिनके तहत सरदार सरोवर परियोजना के विस्थापितों के लिए उपलब्ध कराए गए पुनर्वास को देश की सबसे बेहतरीन पुनर्वास प्रक्रिया बताया जा रहा है। 

यहाँ साझा की गई दूसरी क्लिप, ऊषाबेन के साथ किए गए दूसरे साक्षात्कार से है जो वर्ष 2023 में किया गया, यानी वडगाम से विस्थापन के 28 वर्षों बाद और 2009 में धर्मपुरी पुनर्वास स्थल पर ही उनके साथ किए गए पहले साक्षात्कार के 14 सालों बाद। इस क्लिप में, ऊषाबेन उन दिक्कतों का ब्यौरा देती हैं जिनका सामना पुनर्वास स्थल पर उन्हें अब भी करना पड़ रहा है और वे बताती हैं कि किस तरह उन्हें अब देहाड़ी मज़दूरी पर निर्भर होना पड़ रहा है। एक कदम आगे जाते हुए, वे कहती हैं कि अगर उन्हें पुलिस द्वारा जबरन अपने गाँव से बेदखल नहीं किया गया होता तो उन्होंने अपना मूल गाँव कभी भी छोड़ा नहीं होता, और वे आज भी वडगाम वापस लौट कर अपने पुश्तैनी घर में रहना चाहती हैं। ऐसा ऊषाबेन विस्थापन के और पुनर्वास स्थल पर 28 वर्ष गुज़ार देने के बाद कह रही हैं।    

नादिनी ओज़ा, जिसने उषाबेन का साक्षात्कार लिया वह 1994 में  वडगाम में मौजूद थी जब लोगों को जबरन हटाया गया।      

क्लिप(1) की अवधी: 00:06:12

भाषा: मूल आवाज़ गुजराती में, सबटाइटल्स अंग्रेजी में 

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क्लिप(2) की अवधी: 00:05:00

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