पारसमल कर्णावत

डूब प्रभावित गाव निसरपुर, मध्य प्रदेश

पारसमल कर्णावत नर्मदा पर बनाए जा रहे बड़े बांधों के खिलाफ खड़े हुए संघर्ष के अग्रणी सदस्य रहे हैं। यहां, वह नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल के 1979 के फैसले के बाद मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में खड़े हुए शक्तिशाली आंदोलन, निमाड़ बचाओ आंदोलन के उभार और पतन के बारे में बात करते हैं।

निमाड़ बचाओ आंदोलन की मुख्य मांग थी कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को घटाया जाए। पारसमल (जी) निमाड़ बचाओ आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य और नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बांधों का विरोध करने वाली जन संस्था, नर्मदा घाटी नवनिर्माण समिति के संस्थापक सदस्य हैं। पारसमल (जी) के साथ साक्षात्कार इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यह 1970 और 1980 के दशक में मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर प्रस्तावित बड़े बांधों के खिलाफ शुरुआती संघर्ष के उभार को समझने में हमारी मदद करता है।

निसरपुर के सरपंच (मुखिया) के रूप में, पारसमल (जी) उन शुरूआती लोगों में से थे जिन्होंने सरदार सरोवर परियोजना और मध्य प्रदेश में डूब के 193 गांवो पर इसके होने वाले प्रभावों के मुद्दे पर सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया। पारसमल (जी) पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा नवागाम, गुजरात में एक काफी छोटे (161 फ़ीट) बांध की नीव रखे जाने से लेकर गुजरात में इससे कहीं ऊँचे बांध (530 फ़ीट) का प्रस्ताव रखने वाले खोसला आयोग के गठन तक का इतिहास बयां करते हैं। नर्मदा के तटीय राज्यों के बीच पैदा हुए विवाद, इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल के गठन और 1977 में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद इस ट्रिब्यूनल के 1979 में फैसला सुनाए जाने के इतिहास का भी इस साक्षात्कार में वर्णन किया गया है। पंडित नेहरू द्वारा 1961 में नवगाम में प्रस्तावित बांध से कहीं ऊँचे और बड़े बांध की घोषणा में जनता पार्टी की सरकार और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की भूमिका पर भी पारसमलजी रोशनी डालते हैं। इस साक्षात्कार में वे निमाड़ बचाओ आंदोलन के मुख्य सदस्यों और 1970 के दशक और 1980 के दशक की शुरुआत में नर्मदा घाटी नवनिर्माण समिति में सक्रिय सदस्यों के बारे में भी बात करते हैं। इसमें प्रभाकरजी मांडलिक, काशीनाथ (जी) त्रिवेदी, हरिवल्लभ पारीख जैसे गांधीवादियों और अर्जुन सिंह, वीरेन्द्रकुमार सकलेचा जैसे राजनेताओं द्वारा निभाई गई भूमिका का ज़िक्र भी किया गया है। वे नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल की स्थापना और इसकी कार्यवाही में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका के बारे में भी बात करते हैं। कालांतर में नर्मदा बचाओ आंदोलन के उदय को समझने के लिए यह साक्षात्कार बहुत महत्वपूर्ण है। 

साक्षात्कार की अवधी: 1:22:11

भाषा: मूल आवाज़ हिंदी में, सबटाइटल्स अंग्रेजी में

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