डेडली (बाई) वसावे

डूब प्रभावित गांव: डोमखेड़ी, महाराष्ट्र 

डेडलीबाई नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख आदिवासी नेताओं में से एक रही हैं। उनका गांव डोमखेड़ी महाराष्ट्र में सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले 33 गांवों में से एक है। डेडलीबाई का आंदोलन में योगदान बेमिसाल रहा है, जिसके दौरान उन्होंने सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित दूर-दराज के आदिवासी गांवों की महिलाओं को एकजुट करने से लेकर सरकारी प्राधिकारों और समितियों के सामने नर्मदा बचाओ आंदोलन का प्रतिनिधित्व करने तक, कई ज़िम्मेदारियां निभाई हैं। डेडलीबाई का साक्षात्कार इसलिए भी अनूठा है क्योंकि वह अपनी और नर्मदा घाटी की उन आदिवासी महिलाओं की भूमिका की चर्चा करती हैं, जिन्हें कभी स्कूली शिक्षा नहीं मिली, जो उन गांवों से थी जहां कभी बिजली नहीं पहुँची और सरकार द्वारा रोड भी तब बनाई गई जब हज़ारों आदिवासी परिवारों को विस्थापित और स्थलयांत्रित किया जा रहा था।

“हमारी जुबान ही हमारा हथियार थी”, इस गहरे और मार्मिक वाक्य के ज़रिये विकास परियोजना से होने वाले विस्थापन के खिलाफ अपने जीवन के अधिकार के लिए नर्मदा घाटी के लोगों के अहिंसक आंदोलन का मर्म व्यक्त करती हैं डेडलीबाई, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन की अग्रणी नेताओं में से एक हैं। एक महिला नेता और खुद एक परियोजना प्रभावित व्यक्ति होने के नाते, वे इस विशालकाय बांध के खिलाफ हुए संघर्ष के साथ महिलाओं के इतनी बड़ी संख्या में जुड़ने और सामने से अगुवाई करने के पीछे के कारणों को समझाती हैं। उनके लंबे साक्षात्कार से चुने गए इस छोटे हिस्से में वे आदिवासी महिलाओं के संघर्ष, संघर्ष के दौरान उनके सामने पेश आने वाली चुनौतियों और पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने, डराए-धमकाए जाने और जेल में कैद किये जाने जैसी सरकार की दमनकारी नीतियों का सामना करने के अनुभव की चर्चा करती हैं। वे न्याय और अधिकारों के लिए दिल्ली और मुंबई जैसे भारतीय सत्ता के केंद्रों में डेरा डालने और वहां जाने के लिए की गई रेल यात्राओं के दौरान महिलाओं को पेश आने वाली मुश्किलों के बारे में बात करती हैं। वे बताती हैं कि किस तरह वे इतने बड़े शहर पहले कभी नहीं गए थे और देश के हुक्मरानों से एक बार मिलने के लिए इन प्रदूषण और भीड़ से भरे शहरों में इतने दिनों तक डेरा डालने के कारण किस तरह आदिवासी शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित हुए। वे आंदोलन के शहीदों को भी याद करती हैं जिनमें विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में मारे गए रेहमल पुनिया वसावे भी शामिल हैं।

डेडलीबाई नर्मदा नदी के किनारे बसे आदिवासियों की जीवन शैली, उनकी कृषि पद्धतियों तथा लघु वन उत्पादों पर उनकी निर्भरता की चर्चा करती हैं और बताती हैं कि किस तरह इन सब के साथ-साथ उनके देवी-देवता भी सरदार सरोवर परियोजना के पानी के भेंट चढ़ गए।

इस साक्षात्कार के अनुवाद के लिए विशेष कौशल की ज़रुरत थी क्योंकि इसकी भाषा पावरी थी जिसके लेखन के लिए कोई लिपि नहीं है और यह देश के एक बहुत छोटे हिस्से में ही बोली जाती है। इसलिए मैं इस साक्षात्कार का अनुवाद करने के लिए राहुल बेनर्जी का विशेष तौर पर धन्यवाद करना चाहूंगी।

साक्षात्कार की अवधी: 0:53:00

भाषा: पावरी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

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