नर्मदा बचाओ आंदोलन की रणनीतियां

यहां प्रस्तुत किए गए साक्षात्कारों में नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा एक जन आंदोलन के रूप में अपने तीन दशकों के संघर्ष के दौरान अपनाई गई रणनीतियों और दांव-पेचों से जुड़े विवरण, विश्लेषण, टिप्पणियां और लोगों के व्यक्तिगत अनुभव साझा किए गए हैं। इन चुनिंदा आवाज़ों में नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और विचारक शामिल हैं। यहां साझा किए गए ज़्यादातर साक्षात्कार, कहीं ज़्यादा लंबे साक्षात्कारों के वे हिस्से हैं, जिनमें संघर्ष की रणनीतियों और एक मजबूत आंदोलन खड़ा करने की प्रक्रिया की चर्चा और विश्लेषण किया गया है। नर्मदा आंदोलन द्वारा अपनाई गई रणनीतियों का एक संक्षिप्त परिचय यहां पढ़ा जा सकता है।        

लोगों की सूची और उनके साक्षात्कारों के लिंक नीचे दिए गए हैं।

कमला यादव (कम्मू जीजी)

डूब प्रभावित गांव छोटाबड़दा, मध्य प्रदेश

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

कमला यादव नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक तेज़तर्रार और पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं। अपने लोकप्रिय नाम, कम्मूजीजी कह कर बुलाये जाने वाली कमला यादव, नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्पित दल का हिस्सा हैं। उनका गांव छोटाबड़दा, सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले 245 गांवों में से एक है। कम्मूजीजी ने आंदोलन में कई ज़िम्मेदारियाँ निभाई हैं जिसमें नर्मदा घाटी में काम करना और घाटी के बाहर, आंदोलन का प्रतिनिधित्व करना, दोनों शामिल है। उनकी भूमिका में से सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आंदोलन के समर्पित दल का हिस्सा होने के चलते बांध के चढ़ते पानी का बिना हटे सामना करना और आंदोलन की मांगों को मनवाने के लिए अनशन करना रहा है।

साक्षात्कार की अवधी: 1:22:00

भाषा: हिंदी और निमाड़ी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

रेहमत

डूब प्रभावित गांव चिखल्दा, मध्य प्रदेश

सौजन्य: नर्मदा आंदोलन समूह

रेहमत, मध्य प्रदेश के डूब के गांव चिखल्दा के निवासी और खुद एक विस्थापित हैं जो नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक रहे हैं। आंदोलन में रेहमत ने बेमिसाल भूमिका निभाई है, जिसमें बडवानी में आंदोलन का मुख्य कार्यालय संभालना, मध्य प्रदेश में विस्थापितों के पुनर्वास में व्यापक भ्रष्टाचार को उजागर करना, जिसकी वजह से 2000 के दशक में फिर से सरदार सरोवर परियोजना को रोका गया, बाबा आमटे और साधना ताई के आनंदवन लौटने के बाद उनके नर्मदा किनारे स्थित निवास “निज-बल” की देखरेख करना, परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर शोध और विश्लेषण करना और इन मुद्दों पर व्यापक रूप से लेखन आदि शामिल है। रेहमत का आंदोलन से जुड़ाव बहुआयामी और असाधारण रहा है। रेहमत अभी भी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और साथ-साथ वे मंथन अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ सदस्य भी हैं, जो जल और ऊर्जा के मुद्दों पर कार्य करने वाली एक संस्था है।

साक्षात्कार की अवधी: 2:43:00

भाषा: हिंदी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

रसिक (भाई) गजानंद त्रिवेदी 

डूब प्रभावित गांव: वडगाम, पुनर्वास स्थल: ढेफा, गुजरात  

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

रसिक भाई सरदार सरोवर परियोजना के कारण डूब का सामना करने वाले, नर्मदा घाटी के 245 गांवों में से सबसे पहले गांव वडगाम के निवासी थे जहां से उन्हें विस्थापित किया गया। रसिकभाई नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक प्रमुख पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे हैं। कार्यकर्ता के रूप में रसिकभाई ने कई ज़िम्मेदारियां संभाली जिनमें गुजरात में 100 से भी ज़्यादा पुनर्वास स्थलों पर बसाये गए लोगों को एकजुट करना, डेटा इकठ्ठा करना, मीडिया के साथ बातचीत करना और नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा उठाए गए मुद्दों को समझने के लिए बाहर से आने वाले लोगों के लिए घाटी का दौरा आयोजित करना शामिल है। रसिकभाई द्वारा आंदोलन के कार्यकर्ता के रूप में किया गया कार्य बांध के नज़दीक के इलाकों में होने और राज्य सरकार के आंदोलन के प्रति द्वेषपूर्ण रवैये के कारण भी विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहा है।

साक्षात्कार की अवधी: 0:25:00

भाषा: गुजराती, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

मांगलिया पावरा 

डूब प्रभावित गांव भादल, पुनर्वास स्थल: चिखली, महाराष्ट्र

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

मंगलिया पावरा, नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक तेज़तर्रार आदिवासी नेता, जो कई दशकों से संघर्ष की अगुवाई कर रहे हैं। मंगलिया का गांव भादल, सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबने वाले महाराष्ट्र के 33 गांवों में से एक है और अब वे अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के चिखली पुनर्वास स्थल में रहते हैं। मंगलिया न सिर्फ एक कुशल वक्ता हैं, बल्कि उनमें लोगों को संगठित करने की बेमिसाल क्षमता भी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन में उन्होंने ज़बरदस्त योगदान दिया है। वे आंदोलन में कई अलग-अलग भूमिका निभा चुके हैं और आंदोलन की रणनीतियों पर उनके पैने विचार इनकी कई बारीकियों को उजागर करते हैं।

साक्षात्कार की अवधी: 0:47:20

भाषा: हिंदी और पावरी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

अमित भटनागर

संस्थापक सदस्य, खेडुत मज़दूर चेतना संगठन और आधारशिला शिक्षा केंद्र, मध्य प्रदेश 

फोटो सौजन्य: नर्मदा आंदोलन समूह

अमित भटनागर ने अपनी आर्किटेक्चर की पढाई छोड़कर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष और संगठन का रास्ता चुना। उन्हें आदिवासी प्रतिरोध, कला, संगीत, संस्कृति, इतिहास तथा अर्थव्यवस्था, और इनसे जुड़े ज्ञान और इनके प्रचार-प्रसार में गहरी रुचि है। पश्चिमी मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के असाधारण आदिवासी आंदोलन, खेडुत मज़दूर चेतना संगठन के साथ-साथ वे आधारशिला शिक्षा केंद्र के भी संस्थापक सदस्य हैं। खेडुत मज़दूर चेतना संगठन के कार्यक्षेत्र में आने वाले कई गांव नर्मदा के किनारे बसे थे, और इसलिए खेडुत मज़दूर चेतना संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन का अभिन्न अंग बन गया। खेडुत मज़दूर चेतना संगठन की स्थापना में और नर्मदा बचाओ आंदोलन के शुरूआती वर्षों में अमित की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। खेडुत मज़दूर चेतना संगठन के कार्यकर्ता अभी भी नर्मदा बचाओ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

साक्षात्कार की अवधी: 2:10:00

भाषा: हिंदी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

गिरीशभाई पटेल (1938-2018)

लोक अधिकार संघ और नर्मदा बचाओ आंदोलन, अहमदाबाद, गुजरात

फोटो सौजन्य: नर्मदा आंदोलन समूह

गिरीशभाई पटेल, जिन्हें ‘गुजरात के जनहित याचिका पुरुष’ से भी जाना जाता है, गुजरात के एक मशहूर मानवाधिकार वकील थे। महत्वपूर्ण रूप से, आज़ादी के बाद से गुजरात में हुए सभी महत्वपूर्ण सामाजिक आंदोलनों से गिरीशभाई का गहरा जुड़ाव रहा, फिर चाहे अध्यापक आंदोलन हो या महा गुजरात आंदोलन, नवनिर्माण आंदोलन हो या नर्मदा बचाओ आंदोलन। लोक अधिकार संघ के संस्थापक, गिरीशभाई ने अपने जीवनकाल के दौरान हाशिए के समुदायों के अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए दो सौ से भी अधिक जन हित याचिकाएं दायर की। उनका योगदान सिर्फ कानूनी कार्रवाई तक ही सीमित नहीं था, बल्कि गुजरात के हाशिए के समुदायों के आंदोलनों में वे सीधे और सक्रिय रूप से भाग लेते थे। नर्मदा बचाओ आंदोलन के संस्थापक सदस्य और विचारक के रूप में गिरीशभाई ने आंदोलन में अभूतपूर्व योग दान दिया है।

साक्षात्कार की अवधी: 0:31:30

भाषा: गुजराती और अंग्रेजी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

डॉक्टर सुगन बरंथ

राष्ट्रीय अध्यक्ष, नई तालीम, मालेगांव, महाराष्ट्र

फोटो सौजन्य: अज्ञात

डॉक्टर सुगन बरंथ, एक प्रमुख सर्वोदयी और यह लिखे जाने के समय (जुलाई 2020), नई तालीम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जो गांधीवादी विचारों से प्रेरित शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। सामाजिक मुद्दों पर काम करने से पहले डॉ. बरंथ एक सामाजिक रूप से संवेदनशील और सफल चिकित्सक थे। जयप्रकाश नारायण के युवाओं से किए गए आह्वान से प्रेरित होने वाले डॉ. बरंथ, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के सक्रिय सदस्य थे। इसके बाद, रचनात्मक कार्य और संघर्ष की सर्वोदय विचारधारा से प्रभावित होकर, डॉ. बरंथ महाराष्ट्र सर्वोदय मंडल में सक्रिय रहे और इसके राज्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। डॉ. बरंथ नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य रहे हैं और आंदोलन के रचनात्मक कार्यों को, विशेष तौर पर नर्मदा जीवन शालाओं को संभालने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वह आज भी लगातार नर्मदा बचाओ आंदोलन में और सर्वोदय मंडल और नर्मदा जीवन शालाओं में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

साक्षात्कार की अवधी: 2:26:36

भाषा: हिंदी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

रुकमणी (काकी) पाटीदार 

डूब प्रभावित गांव: छोटाबड़दा, मध्य प्रदेश

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा 

रुकमणी (काकी) पाटीदार, जिन्हें उनके लोकप्रिय नाम रुकमीकाकी या सिर्फ काकी से भी जाना जाता है, नर्मदा बचाओ आंदोलन की सबसे दमदार महिला नेताओं में से एक है। खुद विस्थापन का सामना करने वाली काकी डूब के गांवों से आने वाली वह पहली महिला थी जो न केवल सरदार सरोवर के खिलाफ हो रहे आंदोलन से जुड़ी बल्कि उन्होंने आंदोलन की शुरुआत से ही नर्मदा घाटी की अन्य महिलाओं को संगठित करने का बीड़ा भी उठाया। 

नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक महत्वपूर्ण रणनीति रही है नर्मदा घाटी विकास परियोजना के तहत अन्य प्रस्तावित बांधों से प्रभावित लोगों के आंदोलन को बढ़ावा देना और मज़बूत बनाना। नर्मदा घाटी विकास परियोजना के तहत नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मध्यम और 3000 छोटे बांध बनाने की योजना है। इसमें से एक, महेश्वर पनबिजली परियोजना, देश की पहली निजी क्षेत्र की पनबिजली परियोजना थी। 61 गांवो के डूब क्षेत्र वाले महेश्वर बांध के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन ने तेज़ी पकड़ी और उसे अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता प्राप्त हुई जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और कंपनियों को इस परियोजना से पीछे हटाना पड़ा। शक्तिशाली जन आंदोलन के दबाव और नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने पर, अंत में अप्रैल 2020 में मध्य प्रदेश सरकार ने एस कुमार की निजी कंपनी के साथ किये गए बिजली खरीद अनुबंध को रद्द कर दिया। यह फैसला कंपनी के साथ अनुबंध किए जाने के 25 साल और 3,000 करोड़ रुपये के खर्च के बाद लिया गया। 

अपने इस साक्षात्कार में रुकमीकाकी हमें यह समजाती है कि किस तरह से सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में काम कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुभवी कार्यकर्ताओं ने महेश्वर बांध के खिलाफ आंदोलन को मजबूत बनाने में सहयोग दिया और वे महेश्वर बांध विरोधी आंदोलन की कई बारीकियां भी हमारे साथ साझा करती हैं।       

साक्षात्कार की अवधी: 0:38:00

भाषा: हिंदी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

शांता (बेन) यादव

डूब प्रभावित गांव पीपरी, मध्य प्रदेश (म. प्र.)

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा 

शांताबेन यादव नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख महिला नेताओं में से हैं। इस क्लिप में शांताबेन पद्म विभूषण स्वर्गीय श्री बाबा आमटे द्वारा आनंदवन (महाराष्ट्र) में स्थित अपने घर से नर्मदा घाटी में आकर बसने का उल्लेख करती हैं। बाबा आमटे और उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय साधना ताई ने मध्यप्रदेश के डूब प्रभावित गांव, कासरवाद को अपना निवास स्थान बनाया, और तब बाबा ने सरदार सरोवर परियोजना को रद्द किए जाने की मांग करते हुए कहा था, “मैं डूब जाऊंगा लेकिन यहाँ से हिलूंगा नहीं।” हांलाकि बाबा के बांध के खिलाफ लड़ने और डूब प्रभावित कासरवाद में बसने के फैसले ने नर्मदा बचाओ आंदोलन और इससे जुड़े लोगों के विश्वास को बहुत मजबूती दी, लेकिन इस साक्षात्कार में शांताबेन, बाबा के कासरवाद में एक दशक रहने के बाद, इसे छोड़कर आनंदवन (महाराष्ट्र) वापस लौटने से जुड़ी घटनों का वर्णन भी करती हैं। यह साक्षात्कार हमारी यह समझने में मदद करता है कि किसी मशहूर हस्ती के आंदोलन से जुड़ने से जहाँ एक तरफ आंदोलन को ऊर्जा और मजबूती तो मिलती है, लेकिन इन हस्तियों के जाने के बाद आंदोलन को बड़ा धक्का भी लगता है, और अगर आंदोलन इस घटना से कुशलता से नहीं निपट पाता है तो इस झटके से उबरना और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है।  

क्लिप की अवधि: 00:36:52

भाषा: मूल साक्षात्कार निमाड़ी में, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ

 

नर्मदा बचाओ आंदोलन की रणनीतियों पर कुछ विचार

किसी भी जन आंदोलन या नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया, रणनीतियां और दांवपेच बहुत महत्व रखते हैं। सरदार सरोवर परियोजना के खिलाफ नर्मदा घाटी में शुरू हुए जन आंदोलन ने बांध के बनने का संपूर्ण विरोध करने का फैसला 1980 के दशक के अंत में लिया। तब से, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने न सिर्फ विशालकाय सरदार सरोवर बांध को चुनौती दी बल्कि इसके पीछे की विकास की अवधारणा पर भी सवाल खड़े किये। नर्मदा बचाओ आंदोलन सामूहिक प्रतिरोध की अपनी रचनात्मक रणनीतियों के ज़रिये सरदार सरोवर बांध के निर्माण को कई वर्षों तक रोकने में सफल रहा, परियोजना से प्रभावित हज़ारों परिवारों को न्युन्यतम मुआवज़े और पुनर्वास के साथ बसाने के लिए तीनों तटीय राज्यों को मजबूर कर पाया, और विश्व बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा इस परियोजना को दिए जा रहे समर्थन को सफलतापूर्वक चुनौती दे पाया। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मध्य प्रदेश में नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर बनने वाले कई अन्य बांधों के खिलाफ संघर्षों की अगुवाई भी की।

आंदोलन की मांगों को पूरा करवाने और मील का पत्थर साबित होने वाली कई उपलब्धियों को हासिल करने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन ने पिछले तीन दशकों में कई रणनीतियां अपनाई जिनमें ‘कोई नहीं हटेगा, बांध नहीं बनेगा’; ‘डूबेंगे पर हटेंगे नहीं’; ‘हमारे गांव में हमारा राज’; ‘जल समर्पण’ यानी डूब कर बलिदान देना; कानूनी कार्रवाई, रैलियां, धरने, रस्ता रोको, अनशन, असहयोग, चुनावी राजनीति में हस्तक्षेप आदि शामिल हैं। 

यह सभी रणनीतियां लंबी आपसी बातचीत और चर्चा के बाद निर्धारित की गयी थी और नर्मदा घाटी के लोगों ने इन्हें पूरी गंभीरता और दृढ़ता से लागू किया। इन सभी रणनीतियों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन को अपनी मांगें पूरी करवाने में किस तरह से मदद की है, यह किस हद तक सफल रही हैं और इनके दौरान क्या मुश्किलें पेश आई, इन सब पर आंदोलनकारियों के विचार जानना बहुत महत्वपूर्ण है। शुरुआत में, नर्मदा बचाओ आंदोलन के चुनिंदा वरिष्ठ सदस्यों के साथ किये गए साक्षात्कारों के कुछ छोटे हिस्से यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिनमें वे सभी, नर्मदा बचाओ आंदोलन की विभिन्न रणनीतियों और संगठन के निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में चर्चा करते हैं। इन साक्षात्कारों में नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे संघर्षों को खड़ा करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया और उसकी चुनौतियों के बारे में भी चर्चा की गई है। 

यह खंड नर्मदा घाटी के आंदोलन को देखने के इसके वरिष्ठ सदस्यों के दृष्टिकोण से हमारा परिचय कराता है। कभी कभी आंदोलन की रणनीतियों और प्रक्रियाओं के बारे में एक सदस्य का दृष्टिकोण दूसरे सदस्य के नज़रिये से मेल नहीं खाता। इसलिए यहां साझा की गई जानकारी काफी विविधतापूर्ण और समृद्ध है, जिसमें हमें आंदोलन के अंदर मौजूद अलग अलग वैचारिक धाराओं की बारीकियों को समझने में मदद मिलती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन और खेडुत मज़दूर चेतना संगठन जैसे जन आंदोलनों और संगठनों में अहम भूमिका निभाने वाले असाधारण हस्तियों के साथ किए गए यह साक्षात्कारों से अन्य जन आंदोलन और विकासात्मक, पर्यावरणीय, सामाजिक और राजनीतिक विज्ञान के छात्र भी बहुत कुछ सीख सकेंगे।

आंदोलन के वरिष्ठ सदस्यों के, नर्मदा बचाओ आंदोलन की रणनीतियों, इस सशक्त जन आंदोलन को खड़ा करने की प्रक्रिया और इसमें पेश आने वाली चुनौतियों से जुड़े साक्षात्कारों या उनके छोटे हिस्सों को हम समय-समय पर यहां साझा करते रहेंगे ताकि संघर्ष के इन आयामों को और बेहतर समझा जा सके।