छोटी क्लिप

हालांकि वेबसाइट पर मौजूद लम्बे साक्षात्कारों को पूरा सुनना बहुत ज़रूरी है, नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा उठाये गए कुछ मुद्दों में लोगों की ख़ास दिलचस्पी हो सकती है, इसलिए उन मुद्दों से जुड़ी कुछ छोटी क्लिप यहां उपलब्ध कराई गई हैं। इसका उद्देश्य, परियोजना की आवास कॉलोनी – केवड़िया कॉलोनी – के लिए अधिग्रहित आदिवासी भूमि को स्टेचू ऑफ़ यूनिटी से जुड़ी पर्यटन गतिविधियों के लिए उपयोग किये जाने; महिला विस्थापितों की महिला होने के नाते पुनर्वास से जुड़ी समस्याएं; बांध के नर्मदा नदी पर हो रहे परिणाम आदि जैसे विषयों पर
संक्षिप्त जानकारी को जल्द और सुलभ तरीके से उपलब्ध कराना है।

गिरीशभाई पटेल (1938-2018)

लोक अधिकार संघ और नर्मदा बचाओ आंदोलन, अहमदाबाद, गुजरात

Muljibhai Tadvi
फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

अपने लंबे साक्षात्कार की इस छोटी क्लिप में, गिरीशभाई बताते हैं कि कैसे जनहित याचिका सामाजिक परिवर्तन का माध्यम नहीं हो सकती। वह उन सीमाओं के बारे में बताते हैं जिन्हें जनहित याचिका दायर करते समय लोगों के आंदोलनों को ध्यान में रखना चाहिए।

साक्षात्कार की अवधि: 0:01:48

साक्षात्कार की  भाषा: गुजराती और अंग्रेजी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में


गिरीशभाई पटेल, जिन्हें उनके लोकप्रिय नाम ‘गुजरात के जनहित याचिका पुरुष’ से भी जाना जाता है, गुजरात के एक मशहूर मानवाधिकार वकील थे। गिरीशभाई, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन के संस्थापक सदस्य और विचारधारा के निर्माताओं में से एक थे, इस छोटी क्लिप में सरदार सरोवर परियोजना की आवास कॉलोनी – केवड़िया कॉलोनी – के लिए अधिग्रहित भूमि के पर्यटन के लिए इस्तेमाल किये जाने के मुद्दे के बारे में बात करते हैं। वे यह भी उल्लेख करते हैं कि ज़्यादातर “विकास परियोजनों” में ज़रुरत से ज़्यादा भूमि का अधिग्रहण किया जाता है और किस तरह से इनका फिर मूल उद्देश्यों के अलावा, दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गिरीशभाई, अधिग्रहित भूमि के उद्देश्य में किये जाने वाले इन बदलावों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर इन अनावश्यक ज़मीनों को उनके मूल उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो उन्हें विस्थापितों को वापस लौटा दिया जाना चाहिए।

केवड़िया कॉलोनी के मामले में, जिन ज़मीनों को सरदार सरोवर परियोजना की आवास कॉलोनी के लिए अधिग्रहित किया गया था, उन्हें अब दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा, स्टेचू ऑफ़ यूनिटी से जुड़ी पर्यटन गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। गिरीशभाई के बारे में अधिक जानकारी को और उनके विस्तृत साक्षात्कार को “रणनीतियां” वाले खंड में सुना जा सकता है। 

साक्षात्कार की अवधि: 0:02:48

साक्षात्कार की  भाषा: गुजराती और अंग्रेजी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में

सीताराम (भाई) पाटीदार

जलमग्न गांव कडमल, मध्य प्रदेश

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

स्वर्गीय सीताराम भाई पाटीदार, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ नेता और आंदोलन के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के समूह -समर्पित दल- के भी सदस्य थे, इस क्लिप में बांध के नदी पर होने वाले परिणामों और नदी के अविरल बहाव को बनाए रखने के महत्व के बारे में बताते हैं।

साक्षात्कार की अवधि: 0: 01:30

साक्षात्कार की  भाषा: हिन्दी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में

पिंजरी (बाई)

जलमग्न गांव सिक्का, महाराष्ट्र

Parasmal Karnavat
फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

पिंजरी (बाई), नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ आदिवासी नेता, इस क्लिप में समझती हैं कि किस तरह महिलाओं को उसी स्तर के अधिकार और पुनर्वास नहीं दिये जाते हैं जो भू-मालिकों के बालिग़ पुत्रों को हासिल मिलते हैं, जबकि महिलाएं परिवार की आमदनी और बेहतरी में बराबर का योगदान देती हैं।

साक्षात्कार की अवधि: 0:03:00

साक्षात्कार की  भाषा: पावरी , सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में

पारसमल कर्णावत

जलमग्न ग्राम निसारपुर, मध्य प्रदेश

Prabhakar Mandlik
फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

पारसमल (जी) अपने लम्बे साक्षात्कार की इस छोटी क्लिप में बताते हैं कि 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ सदस्यों ने, नर्मदा नदी का तटीय राज्य न होने के बावजूद राजस्थान को विवाद में शामिल करने के नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का किस तरह से फैसला किया। वह इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया का ज़िक्र करते हैं जिसमें उनका पक्ष प्रख्यात वकील स्वर्गीय श्री वी. एम. तारकुंडे ने रखा था।

पारसमल (जी) के बारे में अधिक जानकारी को और उनके विस्तृत साक्षात्कार को “आरंभिक इतिहास” वाले खंड में सुना जा सकता है। 

साक्षात्कार की अवधि: 0:03:53

साक्षात्कार की  भाषा: हिन्दी , सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में

चंपाबेन तड़वी

जलमग्न गांव वडगाम, गुजरात

Kashiram Maru
फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

चंपाबेन, जो अपने गांव के सरदार सरोवर बांध के पानी में डूब जाने के बाद तेरह साल से धरमपुरी के पुनर्वास स्थल पर रह रही हैं, अपने लम्बे साक्षात्कार की इस छोटी क्लिप में बताती हैं कि किस तरह से और क्यों  धरमपुरी का पुनर्वास स्थल उन्हें कभी भी घर जैसा नहीं लगा।

चंपाबेन के बारे में अधिक जानकारी को और उनके विस्तृत साक्षात्कार को “डूब के प्रभाव” वाले खंड में सुना जा सकता है। 

साक्षात्कार की अवधि: 0:02:23

साक्षात्कार की  भाषा: गुजराती, सबटाइटल्स अंग्रेजी में

केशव (भाऊ) वसावे

डूब प्रभावित गांव निमगव्हाण, महाराष्ट्र 

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

इस क्लिप में केशवभाऊ उस अपरिवर्तनीय प्रभाव की बात करते हैं जो नर्मदा नदी पर बांध बनने से नर्मदा परिक्रमा की सदियों पुरानी धार्मिक/आध्यात्मिक परंपरा पर पड़ा है। वह उस परंपरा के बारे में बात करते हैं कि कैसे हजारों परिक्रमावासियों को नर्मदा के तट पर ग्रामीणों ने खाना खिलाया और उन्होंने और उनके परिवार ने उनकी सेवा कैसे की। सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाने वाली यह क्लिप यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि सरदार सरोवर बांध ने नदी से जुड़ी मान्यताओं को कैसे बाधित किया है।

साक्षात्कार की अवधि: 0:01:59

साक्षात्कार की  भाषा: हिन्दी , सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में

स्वर्गीय मूलजी (भाई) तड़वी

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ नेता, गाँव: केवडिया, गुजरात

फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

अपने लंबे साक्षात्कार की इस छोटी क्लिप में, मुलजी भाई 1960 और 1970 के दशक के शुरुआती संघर्ष के बारे में बताते हैं जब गुजरात के अब के नर्मदा जिले में केवडिया, गोरा, कोठी, लिमडी, वाघडिया और कोठी नाम के छह आदिवासी गांवों की जमीनें सरदार सरोवर परियोजना कॉलोनी के निर्माण के लिए, जिसे तब नवगाम बांध कहा जाता था, छीन ली गईं। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा परियोजना की आधारशिला रखे जाने के तुरंत बाद आदिवासियों के संघर्ष की बात करते हैं।मुलजीभाई अपने गांव केवड़िया के पांच बार सरपंच रहे, जो अब दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए प्रसिद्ध है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण के बाद आदिवासी गांव केवड़िया का नाम बदलकर एकता नगर कर दिया गया है।

साक्षात्कार की अवधि: 0:05:18

साक्षात्कार की  भाषा: गुजराती अंग्रेजी उपशीर्षक के साथ