इस वेबसाइट के बारे में

किसकी और कैसी स्मृतियों को संयोजित, संरक्षित, प्रसारित
व दोहराया जाता है, यह अपने-आप में राजनीति है।

यह वेबसाइट मध्य-पश्चिमी भारत की नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे विशालकाय बांध, सरदार सरोवर परियोजना (एसएसपी) के खिलाफ सामूहिक प्रतिरोध के जन इतिहास को, इस संघर्ष से सीधे तौर पर जुड़े आंदोलनकारियों के मौखिक इतिहास के रूप में लोगों तक पहुंचाने की एक कोशिश है।

mass resistance against the Sardar Sarovar Project (SSP)
फोटो सौजन्य:आशीष कोठारी

नर्मदा आंदोलन के मौखिक इतिहास को यहाँ ऑडियो/वीडियो के रूप में पेश किया गया है। कुछ मौखिक आख्यानों/बयानों/विचारों को इससे पहले एक किताब के रूप में प्रकाशित किया जा चुका है, और आगे भी इन्हें किताबों के रूप में प्रकाशित किये जाने की योजना है।

नंदिनी ओझा द्वारा रिकॉर्ड किये गए करीब 80 साक्षात्कारों के सैंकड़ों घंटो के मौखिक इतिहास आख्यानों को ज़रूरी चयन और संपादन के बाद चरणों में इस वेबसाइट पर साझा किया जायेगा।

उदाहरण के तौर पर, संघर्ष का शुरूआती इतिहास और विकास, महिला नेता और कार्यकर्ता, गांवों के जलमग्न होने का प्रभाव आदि। अन्य साक्षात्कारों को व्यक्तिगत विचारों/आख्यानों के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।

पहला पन्ना – आंदोलन का शुरुआती इतिहास

सबसे पहले यहाँ नर्मदा आंदोलन के आरंभिक इतिहास और विकास को, शुरुआती वर्षों के दौरान संघर्ष के मुख्य व्यक्तियों की ज़ुबानी प्रस्तुत किया जा रहा है। नर्मदा आंदोलन के हाल के वर्षों के इतिहास से तो लोग फिर भी परिचित हैं, लेकिन सरदार सरोवर के खिलाफ 1961 से शुरू हुए आरंभिक प्रतिरोध और उसके इतिहास के बारे में लोगों को उतनी जानकारी नहीं है। इसलिए सबसे पहले इतिहास के इन्हीं पन्नो को इस वेबसाइट पर प्रस्तुत किया जा रहा है।

आरंभिक इतिहास के खंड में उन चुनिंदा व्यक्तियों के साक्षात्कारों को प्रस्तुत किया गया है जो आंदोलन में सक्रिय रहे हैं, कुछ 1961 से, तो कुछ 1970 के आखिरी दशकों और 1980 के आरंभिक दशकों में नर्मदा बचाओ आंदोलन और नर्मदा घाटी नवनिर्माण समिति में, और इनमें से कई 1980 के दशक के मध्य में नर्मदा धरणग्रस्त समिति और 1980 के दशक के आखिर में नर्मदा बचाओ आंदोलन की स्थापना में सक्रिय और/या  गवाह रहे हैं।

Early History of the movement
फोटो सौजन्य:आशीष कोठारी

दूसरा पन्ना – जलमग्न होने का प्रभाव

Impact of submergence
फोटो सौजन्य: अज्ञात 

बाँध की वजह से जलमग्न होने के, लोगों और नर्मदा घाटी पर पड़ने वाले प्रभाव की झलक दिखाने वाले अलग-अलग लोगों के साथ किये गए लम्बे साक्षात्कारों के कुछ छोटे चुनिंदा हिस्सों को इस खंड में साझा किया जा रहा है।

तीसरा पन्ना – नर्मदा बचाओ आंदोलन की रणनीतियाँ

इस खंड में प्रस्तुत किये गए साक्षात्कारों में नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा 30 वर्षो से भी अधिक चलने वाले सामूहिक जन आंदोलन के दौरान अपनाई गई कई रणनीतियों और दांव-पेचों से जुड़ी टिप्पणियां, विश्लेषण और व्यक्तिगत अनुभव प्रस्तुत किये गए हैं। यह चुनिंदा आवाज़ें आंदोलन के वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं और विचारकों की हैं। यहाँ शामिल किये गए ज़्यादार आख्यान लम्बे साक्षात्कारों के वे छोटे अंश हैं जहाँ आंदोलन की रणनीतियों और एक शक्तिशाली जन आंदोलन को खड़ा करने की प्रक्रिया से जुड़े अनुभवों और टिप्पणियों का उल्लेख किया गया है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन पर सरकार द्वारा दमन और पुलिस कार्रवाई, फोटो सौजन्य: अज्ञात

चौथा पन्ना – नर्मदा बचाओ आंदोलन की महिला नेता

चाहे प्रभावित समुदायों की महिलाएं हों या घाटी के बाहर से आने वाली महिला कार्यकर्ता, नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवाई करने वालों में महिलाएं हमेशा आगे रही हैं। चाहे गुजरात हो या महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश, महिलाओं ने हमेशा सामने से मोर्चा संभाला है और इसके कारण सरकार के दमन का खामयाज़ा भी भुगता है। सरदार सरोवर परियोजना और यह बांध, विकास के जिस मॉडल का प्रतीक है, उसके विरोध में खड़े होने के लिए कई महिलाओं को जेल भेजा गया, पीटा गया और यहाँ तक की लैंगिक रूप से प्रताड़ित भी किया गया। यहाँ प्रस्तुत किये गए साक्षात्कार आंदोलन की कुछ प्रमुख महिला नेताओं की आवाज़ें हैं जो आंदोलन के अपने अनुभव और आंदोलन में महिलाओं द्वारा अदा की गयी अनूठी और विविध भूमिकाओं को बयां कर रही हैं।

यह सभी साक्षात्कार, वरिष्ठ कार्यकर्ता और लेखक राहुल बनर्जी द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन की आदिवासी महिला नेताओं के बारे में कहे गए कथन की पुष्टि भी करते हैं, “आदिवासी महिला कार्यकर्ता, ये सभी ज़मीनी विचारक हैं जिन्होंने इस मिथक को चकनाचूर कर दिया है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन शहरी विचारकों द्वारा प्रेरित आंदोलन है”।

पांचवा पन्ना

इन ऑडियो-वीडियो क्लिप में नर्मदा बचाओ आंदोलन के दिग्गज नेता और सरदार सरोवर परियोजना से विस्थापित होने वाले व्यक्ति सरदार सरोवर बांध बनने के पहले मुक्त बहने वाली अगाध नर्मदा नदी के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हैं। नर्मदा घाटी के लोगों के लिए नर्मदा नदी नमामी देवी नर्मदे या फिर नर्मदा मैया है। नर्मदा नदी संभवतः एकमात्र ऐसी नदी है जहां हर साल हजारों लोग नर्मदा परिक्रमा पर जाते हैं – जो अमरकंटक में इसके उद्गम स्थल से इसके मुहाने और फिर अमरकंटक तक होती है। नर्मदा के किनारे के गाँव इन परिक्रमावासियों को भोजन और आश्रय प्रदान करना एक पवित्र कार्य मानते हैं।

यह आवाज़ें और नर्मदा और इसके किनारे रहने वाले लोगों के जीवन से जुड़ी तस्वीरें, नदी के स्वछंद बहाव के महत्व को रेखांकित करती हैं।

अपने इन वक्तव्यों में सभी यह बताते हैं कि किस प्रकार नर्मदा और उसके किनारे बसे लोगों की ज़िंदगियाँ आपस में गुथ्थम-गुथ्था रही हैं, चाहे सामाजिक स्तर पर हो या सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक स्तर पर। यह सभी साक्षात्कार हमारी यह समझने में मदद करते हैं कि किस तरह एक आज़ाद बहने वाली नदी को विशालकाय बांध बनाकर ठहरे पाने के जलाशय में बदला जाना, उन लोगों की जीवनशैली को बर्बाद कर देता हैं जो इस प्राचीनतम नदी सभ्यता के वंशज हैं। इन आवाज़ों के पीछे की गहन सोच हमें सरदार सरोवर के निर्माण के पहले की नर्मदा नदी और लोगों के बीच के गहरे रिश्ते के बारे में बताती है। इन साक्षात्कारों को विशेष रूप से उन लोगों को ज़रूर सुनना चाहिए जो सरदार सरोवर बांध के निर्माण के पहले स्वछंद बहने वाली नर्मदा नदी के बारे में जानने की रुचि रखते हैं।

पांचवा पन्ना- छोटी क्लिप

हालांकि वेबसाइट पर मौजूद लम्बे साक्षात्कारों को पूरा सुनना बहुत ज़रूरी है, नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा उठाये गए कुछ मुद्दों में लोगों की ख़ास दिलचस्पी हो सकती है, इसलिए उन मुद्दों से जुड़ी कुछ छोटी क्लिप यहां उपलब्ध कराई गई हैं।

इसका उद्देश्य, परियोजना की आवास कॉलोनी – केवड़िया कॉलोनी – के लिए अधिग्रहित आदिवासी भूमि को स्टेचू ऑफ़ यूनिटी से जुड़ी पर्यटन गतिविधियों के लिए उपयोग किये जाने; महिला विस्थापितों की महिला होने के नाते पुनर्वास से जुड़ी समस्याएं; बांध के नर्मदा नदी पर हो रहे परिणाम आदि जैसे विषयों पर संक्षिप्त जानकारी को जल्द और सुलभ तरीके से उपलब्ध कराना है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा महा कूच, फोटो सौजन्य: शैलेन्द्र यशवंत

प्रस्तुति का स्वरूप

साक्षात्कारों को सिर्फ ऑडियो (मौखिक) रूप में ही रिकॉर्ड किया गया था, लेकिन यहाँ ऑडियो के साथ तस्वीरों को जोड़ कर वीडियो के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सबटाइटल्स (उपशीर्षक) अंग्रेजी में (जहाँ साक्षात्कार की भाषा अंग्रेजी के अलावा कोई और भाषा है) और हिंदी में (जहाँ साक्षात्कार की भाषा अंग्रेजी है) उपलब्ध कराये गए हैं। 

फोटो और तस्वीरें कई अलग-अलग व्यक्तियों और संस्थाओं के ज़रिये संकलित की गई हैं। साक्षात्कार देने वालों के रेखाचित्र मुख्यता नंदिनी ओझा द्वारा लिए गए हैं। 

संपादन

क्योंकि इनमें से कई साक्षात्कारों में उपरोक्त विषयों के अलावा संघर्ष के कई अन्य आयामों की भी चर्चा की गयी है, इसलिए इन साक्षात्कारों/मौखिक इतिहास को उपरोक्त विषयों से जुड़ी जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से संपादित किया गया है।   

आख्यान, घटनाओं और उनके क्रम में निरंतरता बनाए रखने और पहले कही जा चुकी बातों के दुहराव को दूर करने के उद्देश्य से भी साक्षात्कारों को संपादित किया गया है। संपादन के दौरान इस बात का ख़याल रखा गया है कि मूल आख्यान के अर्थ, आशय और केंद्रीय सन्देश में कोई बदलाव नहीं हो।

Format of presentation
फोटो सौजन्य: आशीष कोठरी 

अनुवाद

चूंकि यहाँ संकलित किए गए साक्षात्कार सात अलग-अलग भाषाओँ और बोलियों में किये गए हैं, इनका अनुवाद इस काम का एक बड़ा और कठिन हिस्सा रहा है। कुछ व्यक्ति एक ही साक्षात्कार के दौरान एक से ज़्यादा, कभी कभी तीन-तीन भाषाओँ या/और बोलियों में भी बात कर रहे हैं। इन भाषाओँ से अंग्रेजी में अनुवाद नंदिनी ओझा द्वारा और कुछ अनुवाद  पेशेवर मदद द्वारा किये  गये हैं क्योंकि अक्सर इन बोलियों के अनुवादक मिलना मुश्किल होता है। अंग्रेजी से हिंदी, पावरी से अंग्रेजी और भीलाली से अंग्रेजी में अनुवाद के लिए पेशेवर मदद ली गई है।

अनुवाद बोली भाषा से जितना करीब हो सके उतना करीब रखा गया है। जहां कोई बोला गया असल शब्द सुनाई नहीं दिया या जिसका सटीक अर्थ बताना मुमकिन नहीं था, वहां वक्तव्य का आशय या मूल अर्थ बनाए रखने की कोशिश की गई है। मौखिक इतिहास लोगों की भागीदारी से दर्ज किया गया इतिहास है, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि इन्हें सुनने वाले उन शब्दों का सटीक अनुवाद ढूंढने में हमारी मदद करेंगे जिनके मूल अर्थ का अनुवाद नहीं हो पाया है।

सबटाइटल्स (उपशीर्षक)

जैसा कि पहले कहा गया है, सबटाइटल्स (उपशीर्षक) उपलब्ध कराए गए हैं। लेकिन सबटाइटल्स के साथ यह दिक्कत रहती है कि बोले हुए शब्दों (ऑडियो) की रफ़्तार अक्सर लिखे हुए शब्दों को पढ़ पाने की रफ़्तार से ज़्यादा होती है।

इसलिए  मौखिक आख्यान/इंटरव्यू में मौजूद शब्दों के मुकाबले सबटाइटल्स में कम शब्दों का उपयोग किया गया है, खासकर तब जब साक्षात्कार देने वाले बहुत तेज़ी से बोल रहे हैं।

इस बात का ख़ास ध्यान रखा गया है कि सबटाइटल्स में बोले गए शब्दों का मूल अर्थ बना रहे।

अंत में, यह उन आवाज़ों को भारत और विश्व के सभी लोगों के सामने लाने का एक प्रयास है जो भारत के सबसे शक्स्तिशाली जन आंदोलन में से एक आंदोलन का प्रमुख हिस्सा रहे हैं, पर जिनके विचारों और अनुभवों से दुनिया अनजान है। यह वेबसाइट का पहला चरण है और नंदिनी ओझा समय और संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार, नर्मदा आंदोलन के इतिहास के और पन्ने इसमें जोड़ती जाएंगी।