छगन (भाई) केवट

जलमग्न गांव सोंदुल, मध्य प्रदेश

…निसरपुर का बाज़ार लगता था, लकड़ी वाले जाते थे निसरपुर बेचने…पाला-गठ्ठियां बांध कर ले जाते थे बेचने के लिए…तो उनको एक पैसे में इधर से (नर्मदा पार) ले भी जाना और उधर से बाजार करके जब आए, तो उनको वापस भी लाना। नाव पर बैठा कर नमर्दा नदी के उस पार करना, उसके बाद वो बाजार जाते थे…5-6 किलोमीटर पर निसरपुर पड़ता है, वहां बाजार करके वे वापस आते थे। वे अंजन का पाला पहाड़ से लाते थे, लकड़ी, कोयला, सब ले जाते थे, बेचने के लिए…राजघाट पर भी नाव चलती थी। नाव में जीप, मोटर सब उतरती थी, जब पहले पुल नहीं था, तो राजघाट में केवटों की अच्छी आमदनी आती थी, दिन भर नावें चलती थी…

छगनभाई केवट।

अपनी आजीविका के लिए नाव खेने और यात्रियों और सामानों को नदी के पार लाने ले जाने के काम पर निर्भर केवट समुदाय से आने वाले छगनभाई इस साक्षात्कार में नर्मदा नदी के किनारे बसे उनके गांव सोंदुल में उनके केवट समुदाय और अन्य समुदायों के जीवन का वर्णन करते हैं। कहार समुदाय की ही तरह, केवट समुदाय की आजीविका भी नदी से सीधे तौर पर जुड़ी है, और इसलिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि नदी में होने वाली उथल-पुथल इन समुदायों को किस तरह से प्रभावित करती है। 

इस क्लिप में शामिल की गई तस्वीरें नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध से ऊपर और नीचे के नदी के हिस्से में इस्तेमाल की जाने वाली नौकाओं की है।

साक्षात्कार की अवधी:
00:30:00

भाषा:
हिंदी, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ

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