शांता (बेन) यादव

डूब प्रभावित गांव पीपरी, मध्य प्रदेश (म. प्र.)

शांताबेन यादव नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख महिला नेताओं में से हैं। उन्होंने आंदोलन में बहुत अहम भूमिका निभाई है, जिसमें वर्ष 1990-91 में गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित फेरकुवा पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के महाकूच के दौरान उनके द्वारा किया गया अनिश्चितकालीन अनशन भी शामिल है।

जहाँ आदिवासियों के लिए नर्मदा नदी खुले मन से देने वाली माँ नर्मदा है, वहाँ हिंदुओं के लिए गंगा नदी की ही तरह, नर्मदा नदी भी देवी का रूप है। क्योंकि नर्मदा को शिव की पुत्री माना जाता है, इसलिए इसके किनारे का हर पत्थर शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, अपने सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा में स्नान करना होता है, लेकिन इसके लिए नर्मदा के तो सिर्फ दर्शन ही काफी होते हैं। इसी कारण से नर्मदा से जुड़ी हुई एक अनुठी परंपरा है, शायद पूरी दुनिया में अकेली ऐसी प्रथा, जिसके तहत लाखों हिन्दू श्रद्धालु नर्मदा नदी की परिक्रमा करते हैं। इस सदियों पुरानी परंपरा के तहत की जाने वाली परिक्रमा को पूरा करने के लिए 2,600 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। परिक्रमा के नियम के अनुसार परिक्रमावासी परिक्रमा के दौरान अपने साथ कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं रख सकते हैं, और नर्मदा नदी के किनारे बसने वाले गाँववासी इन परिक्रमावासियों की मदद करने को पुण्य कर्म मानते हैं।
नर्मदा से अपने जीवन के इस गहरे जुड़ाव के कारण, इसके किनारे बसने वाले गाँव वासियों ने, न सिर्फ अपनी आजीविका की रक्षा करने के लिए, बल्कि देश की सबसे समृद्ध नदी घाटी सभ्यताको मिटने से बचाने के लिए नदी पर बनाए जा रहे विशालकाय बांधों के खिलाफ पुरज़ोर विरोध किया।
शांताबेन, इस क्लिप में नर्मदा नदी के किनारे बसने वाले लोगों की ज़िन्दिगियों के विभिन्न पहलुओं और उनके नर्मदा से गहरे रिश्तों का वर्णन करती हैं। सरदार सरोवर बांध के खुद नर्मदा नदी पर होने वाले प्रभावों को समजाते हुए, वे कहती हैं, “हाँ, उसका (बाँध का ) बहुत असर पड़ा है, उन्होंने (सरकारने) और ज़्यादा पानी रोकना शुरू करा दिया है…गाद जमा हो गई हैं- इतनी-इतनी, तो उसमें अब नहाने में दिक्कत आती है। उसमें इतना कचरा-कूटा है अब कि किनारे-किनारे नहाना पड़ता है। बहुत दिक्कत आती है, लेकिन अब क्या करें? तो हम हाथ जोड़कर मैया से कहते हैं, ‘मैया! अब तू संभाल अपने को, हमारा कुछ कसूर हो तो बोल, हम तो बहुत लड़ रहे हैं, लेकिन अब क्या करें?’ पानी भी हरा दिखता है, और उसके स्वाद में भी फर्क है, पीने में स्वाद नहीं आता…अगर नदी बहती रहती, तो ये सब (कचरा) भी बह जाता, लेकिन अब ये रुक जाता है, जिसकी वजह से गंदगी रहती है मैया में…पहले पानी पूरा स्वच्छ, सफ़ेद झक दिखता था, नदी बहती हुई दिखती थी, उसकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनाई देती थी…पहले पानी साफ था, अब पानी हरा-कच दिखता है, ऐसी हालत है।”

साक्षात्कार की अवधि: 0:25:31

भाषा: मूल साक्षात्कार निमाड़ी में, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ

सबटाइटल्स को वीडियो के नीचे दाईं ओर ‘CC’ बटन पर क्लिक करके चालू और बंद किया जा सकता है।