नरसिंहभाई सोनी / सोनीबेन तड़वी

कोठी, केवड़िया कॉलोनी से प्रभावित गाँव   

“हमारे पास में ही एक नदी बहती है। हमें कॉलोनी से आने वाले (गंदी नाली के) पानी को (इस नदी के पानी में घुसने से) रोकना पड़ा। नज़दीक से बहने वाले इस ज़हरीले पानी की वजह से हमारे कई मवेशी मर गए; कई भैंसे भी मर गई। हम उसी पानी को पी रहे थे। हम बहती धारा से पानी पीते थे, उसी नाले से। हमारी नदी चट्टानों के बीच से बहा करती थी। और हम वो बहता हुआ पानी पिया करते थे। इसलिए हमने उस (गंदी नाली के) पानी को नदी में बहने से रोक दिया। हमने हिम्मत दिखाई; हमने दफ्तरों के चक्कर लगाए, हमने कहा, “इस गंदे पानी के बहाव को रोको।”

उन्होंने कहा कि यह उनके अधिकार के बाहर है। हमने पूछा कि यह तुम्हारे अधिकार में क्यों नहीं है? क्या इस गंदे पानी को अंदर आने से रोकना तुम्हारे अधिकार में है या नहीं? तब उन्होंने गंदे पानी के बहाव को दूसरी ओर मोड़ दिया। तो, हमारी भैंसे और छोटे बछड़े जब चरने जाते थे तो वे उस पानी को पीने लगे, छोटे बछड़ों के पेट फूलने लगे; बछड़े मरने लगे। हम फिर दफ्तर गए और उन्हें बताया कि हमारे बछड़े मर रहे हैं। भैंसों की अंतड़ियों को नुकसान हो रहा है। हम बार-बार दफ्तर गए। उसके बाद ही उन्होंने इस गंदे पानी की निकासी के लिए कुएं खोदे। पास ही में एक फ़िल्टर (शुद्धिकरण संयंत्र) लगाया गया। और तब जाकर गंदे पानी का बहाव रुका…हम पहले ही मृत जैसे हो चुके हैं। तुम ने पहले ही हमारी ज़मीनें हम से छीन ली हैं। अब हम जीवित रह कर भी क्या करेंगे? हमारे बच्चे; जैसे चिड़ियाएं अनाज चुगती हैं, दीदी; उसी तरह जब बाँध का काम चल रहा था; और क्योंकि वहाँ कॉलोनी बन चुकी थी, हमने मेहनत-मज़दूरी करके गुज़ारा किया। लेकिन सोचो; जब यह ज़मीनें नहीं होंगी तो हमारे बच्चे कहाँ भटकेंगे? सूरत में? बिना ज़मीन के वो कैसे गुज़रा करेंगे? कैसे ज़िंदा रहेंगे वो? हम बाँध बनाने गए थे, हमने वहाँ मज़दूरी की, हमने (अधिकारियों के ) बर्तन मांजे; लेकिन हमारे बच्चे अब किसके बर्तन साफ़ करेंगे? फिर वो, पंछियों की तरह उड़ जाएंगे, और फिर शाम को ही एक-साथ मिलेंगे। इस तरह से, उनका भी वही नसीब होगा। जब तक हमारे पास ज़मीनें थी तब तक हमने खेती की, लेकिन अब; हमारे बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है। अब तो पेशाब करने के लिए भी कोई ज़मीन नहीं बची! किसी के पास कुछ नहीं बचा। हमारे बच्चों की हालत क्या होगी? इसके बारे में आपको सोचना चाहिए। अगर मैं अपनी कहानी बताना शुरू करूं तो रोने लगूंगी, दीदी। अगर सरकार हमें (ज़मीन) देती है, तो हमें राहत महसूस होगी…हमारा धरना आज भी जारी है। अगर सरकार हमें अपना हक़ देती है तो हमारे बच्चे खुशहाल होंगे। हमें यही एक आशा है।”

यह उन छोटे और बड़े संघर्षों की एक छोटा सी झलक है जिन्हें केवड़िया कॉलोनी के लिए ज़मीनें खो देने वाले आदिवासियों को लड़ना पड़ा और आज भी लड़ना पड़ रहा है।

यह साक्षात्कार, गुजरात के नर्मदा जिले के केवड़िया, कोठी, लिमड़ी, नवगाम, गोरा और वाघड़िया गाँवों के आदिवासियों के शुरूआती संघर्ष का इतिहास बयां करता है। यह साक्षात्कार इन छह गाँवों के निवासियों द्वारा अपनी ज़मीनों के लिए लड़े गए संघर्ष की गवाही देता है और बताता है कि किस तरह इसके बावजूद सैंकड़ों आदिवासी परिवारों से उनकी कृषि भूमि, चराई के जंगल, पानी के स्रोत, इत्यादि छीन लिए गए। यह साक्षात्कार हमें यह कभी भी भूलने नहीं देगा कि आज दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा और सबसे विशाल बांधों में से एक के लिए प्रसिद्द केवड़िया कॉलोनी (जिसका नाम बदलकर एकता नगर कर दिया गया हैं) से प्रभावित आदिवासी परिवारों को उनके मौलिक अधिकारों और गरिमा से वंचित किया गया था। यह साक्षात्कार उन अनुसूचित जनजाति समुदायों की स्थिति समझने में भी हमारी मदद करता है जिनकी ज़मीनों का अधिग्रहण सरदार सरोवर जैसी बड़ी बांध परियोजना के लिए किया गया था, और जिसे गुजरात के उस विकास मॉडल का प्रतीक समझा जाता है जिसका अनुसरण अब पूरा देश करने की कोशिश कर रहा है।

साक्षात्कार की अवधी:
0:49:47

भाषा:
गुजराती, अंग्रेजी में सबटाइटल्स के साथ

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