कार्यविधि

नंदिनी ओझा बारह वर्षो से भी ज़्यादा समय तक नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता रही हैं और फिर अगले 9 वर्षों तक उन्होंने नर्मदा घाटी में ही रहते हुए आंदोलन के साथ नज़दीकी संपर्क बनाए रखा। नंदिनी ओझा ने साल 2004 में नर्मदा बचाओ आंदोलन के स्थानीय व नर्मदा घाटी के बाहर से आने वाले कार्यकर्ता, स्थानीय आदिवासी, खेतिहर और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर समुदायों के प्रमुख महिला एवं पुरुष नेताओं के साथ साक्षात्कार रिकॉर्ड करना शुरू किया।

Methodology
फोटो सौजन्य: श्रीपद धर्माधिकारी

2004 से, लगभग २ दशक के समय के दौरान, मैंने (नंदिनी ओझा) डिजिटल फॉर्मेट में सात भाषाओं और बोलियों में (अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, निमाड़ी, पावरी और भीलाली) नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ सदस्यों के साथ साक्षात्कारों को रिकॉर्ड करना शुरू किया। साक्षात्कारदाताओं का चयन आंदोलन के अन्य कार्यकर्ताओं और समर्थन समूह के सदस्यों के साथ सामूहिक रूप से किया गया है। यह चयन दो उद्देश्यों को ध्यान में रख कर किया गया है – पहला, संघर्ष के प्रमुख साथियों के अनुभवों को शामिल करना और दूसरा, उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करना जो कम  जाने पहचाने हैं और खुद अपने अनुभव के बारे में जिनके लिखने की संभावना कम है। 

करीब २० सालों की अवधि के दौरान, इन सक्षात्कारदाताओं के साथ दो या तीन बार भी बातचीत की गई है ताकि घटनाओं और इतिहास के लंबे सिलसिले को पूरी तरह से दर्ज किया जा सके। इन साक्षात्कारों की अवधी एक से दस घंटे की है, और कुछ की इससे भी लंबी है। स्थानीय आदिवासी नेताओं के साथ कुछ साक्षात्कार विस्थापन के तुरंत बाद किये गए थे और फिर दोबारा विस्थापन के कई वर्षों बाद किये गए थे। विकास-प्रेरित विस्थापन के कारण लोगों के जीवन पर होने वाले प्रभावों की बेहतर समझ हासिल करने के लिए ऐसा किया गया है।

उदाहरण के लिए, एनबीए की वरिष्ठ आदिवासी महिला नेता, चंपाबेन तड़वी का 1994 में नर्मदा नदी के तट पर स्थित उनके गांव वडगाम से विस्थापित होने के बाद 2009 में साक्षात्कार लिया गया था और वर्ष 2023 में एक बार फिर उनका साक्षात्कार लिया गया।  वर्ष 1994 में विस्थापित हुई उषाबेन तड़वी का साक्षात्कार 2009 में और एक बार फिर 2023 में लिया गया है। चंपाबेन और उषाबेन के दोनों इंटरव्यू यहा उपलब्ध हैं। 

नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता के रूप में काम करने की वजह से मुझे इस मौखिक इतिहास के संकलन के दौरान लोगों के भरोसे और विश्वास का अतिरिक्त लाभ मिला। क्योंकि आंदोलन की प्रमुख हस्तियों को भी इस तरह के संकलन की ज़रुरत उतनी ही तीव्रता से महसूस हुई जितनी मुझे, साक्षात्कारदाताओं ने आगे आकर अपने अनुभवों और विचारों को खुले तौर पर व्यक्त किया है। इसलिए यहाँ दर्ज किया गया मौखिक इतिहास मुक्त संवाद के रूप में है, जहां लोगों ने खुल कर अपने काम, अपनी सोच और अपने विचारों को गहराई से व्यक्त किया है। इसके ज़रिये नर्मदा बचाओ आंदोलन के कई दशकों का इतिहास, इससे जुड़े लोगों की आवाज़ों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। और भी महत्व की बात यह है कि साक्षात्कारदाता अपने घरों के सहज माहौल में, अपनी मातृभाषा या जिस बोली में बात करने में आसानी हो, उस भाषा में, उस व्यक्ति से बात कर रहे थे जिसके साथ वे आंदोलन में काम कर चुके थे, और इसलिए लोगों ने अपने बेहद ख़ास अनुभव साझा किये हैं। 

क्योंकि तीन अलग-अलग राज्यों के, विभिन्न सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले कई अलग अलग भूमिका और अनुभव वाले साथियों के साथ साक्षात्कार किये गए हैं, इसलिए संकलित मौखिक इतिहास में भी उसी विविधता की परछाई दिखाई देती है। 

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फोटो सौजन्य: नंदिनी ओझा

यहाँ पर मैं यह भी उल्लेख करना चाहूंगी कि इस तरह के मौखिक इतिहास की अपनी कुछ सीमितता भी होती हैं। कुछ सीमितताएं खुद कार्यविधि का ही हिस्सा हैं। अन्य सीमितताएं उन ख़ास हालातों से पैदा हुई हैं जिनमें मैंने यह साक्षात्कार रिकॉर्ड किये हैं।

इस कार्यविधि में निहित कुछ सीमितताएं हैं समय के साथ लोगों की याददाश्त का धुंधला होना और इतिहासकार के व्यक्तिगत पूर्वाग्रह। 

कुछ सीमितताएं ख़ास इस तरह के कार्य से जुड़ी हुई  हैं। उदाहरण के तौर पर, इस बदलते दौर में भी आदिवासी यह मानते हैं कि आंदोलन में उनकी भूमिका और योगदान के बारे में बात करना, चाहे कितने ही महत्वपूर्ण हो, अपनी शेखी बघारना है। इसलिए लोग अपने बारे में बात करने में झिझक रहे थे पर घटनाओं, मुद्दों और अन्य लोगों के योगदान के बारे में खुल कर बात कर रहे थे। दूसरी चुनौती यह थी कि हालांकि लोगों ने कई संवेदनशील मुद्दों और आंदोलन और उसकी रणनीतियों की कमियों के आलोचनात्मक मूल्यांकन साझा किये और इसे रिकॉर्ड भी किया गया लेकिन आंदोलन की कुछ अति संवेदनशील जानकारी को वह सार्वजनिक रूप से रिकॉर्ड नहीं करना चाहते थे। इसलिए नर्मदा संघर्ष के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुई चर्चा सिर्फ मेरी स्मृति और निजी डायरी में ही दर्ज है। 

और अंत में मेरी खुद की कुछ सीमितताएं, कौशल्य या उसके अभाव की भी बात करना ज़रूरी है। हालांकि मौखिक इतिहास भारत की प्राचीन परंपरा रही है, लेकिन एक समाजशास्त्र के रूप में यह भारत में नया है, और इसे अभी भी पूरी तरह से “वैध इतिहास” के रूप में मान्यता नहीं मिली है। हालांकि इसमें बदलाव आ रहा है और मौखिक इतिहास को अब मान्यता मिल रही है, लेकिन मैंने जब इस काम की शुरुआत की थी तब इस विधि पर कोई शैक्षणिक कार्यक्रम या प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं था। इसलिए यह खुद ही सीख कर, इस विषय पर उस वक़्त उपलब्ध किताबों और सामग्री पढ़कर और करते करते सीखकर की गयी एक कोशिश है।

एक दूसरी चुनौती जिसका मुझे सामना करना पड़ा वह थी समय और संसाधनों की कमी। क्योंकि नर्मदा बचाओ आंदोलन एक राजनीतिक आंदोलन है, इसलिए इस कार्य के लिए वित्तीय सहायता के स्रोतों के चयन में काफी सावधानी बरती गयी और मैं नहीं चाहती थी कि यह एक बड़ी लागत का प्रोजेक्ट बने। इसलिए मैं आंदोलन के सभी प्रमुख व्यक्तियों के साथ साक्षात्कार रिकॉर्ड नहीं कर पाई। कुछ साक्षात्कार अन्य कारणों  की वजह से छूट गए। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग, जिनके साथ मैं साक्षात्कार करना चाहती थी, उन्होंने लगातार याद दिलाने के बावजूद साक्षात्कार के लिए तय समय नहीं दिया जिसमें मेधा पाटकर, अनिल पटेल, प्रतिभा शिंदे आदि शामिल हैं। लेकिन नर्मदा आंदोलन से जुड़े जाने माने चेहरों के कई साक्षात्कार किताबों और पत्रिकाओं जैसे कई प्रकाशनों में उपलब्ध है। इसलिए इस मौखिक इतिहास में उन प्रमुख लोगों के आख्यानों को दर्ज करने पर ज़ोर दिया गया है जिनके बारे में ज़्यादा नहीं लिखा गया है या जिन्होंने अपने विचार खुद कहीं व्यक्त नहीं किये हैं और न ही ऐसा करने की ज़्यादा संभावना है। कुछ साक्षात्कार अधूरे हैं, जिन्हें में जल्द ही पूरा करूंगी। 

आंदोलन के साथ मेरा अपना लंबा जुड़ाव, और साक्षात्कारदाताओं के साथ मेरा व्यक्तिगत रिश्ता, हालाँकि इस काम के लिए कई मायनों में फायदेमंद साबित हुआ, लेकिन कुछ मायनों में इसे एक सीमितता के रूप में भी देखा जा सकता है। चर्चा के विषय और साक्षात्कारदाताओं के साथ इतनी नज़दीकी को शायद निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।

इन सीमितताओं को रेखांकित करने के बाद, मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि इतिहास को दर्ज करने के हर तरीके की अपनी सिमितताएं होती है। इन सीमितताओं से इतिहास दर्ज करने के तरीके का महत्व कम नहीं होता, बशर्ते की हम इन सीमितताओं को ध्यान में रखकर चलें।

इन साक्षात्कारों को दर्ज करते समय मैंने इन सीमितताओं को ध्यान में रखने की पूरी कोशिश की है और जहां संभव हो, उन्हें दूर करने का भी प्रयास किया है।

यह एक सतत काम है और मैं यहां और साक्षात्कार समय और संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार डालती रहूँगी ।

मेरा मानना है कि यहाँ संकलित किया गया मौखिक इतिहास बहुत मूल्यवान हैं क्योंकि इसमें उन आवाज़ों को शामिल किया गया है जो शक्तिशाली हैं, प्रामाणिक है और विविधतापूर्ण हैं, और यह उन लोगों की आवाजें हैं जिन्होंने अपने आंदोलन से नर्मदा घाटी का इतिहास रचा है।