नर्मदा आंदोलन के प्रणेताओं और पथप्रदर्शकों की तस्वीरें

सरदार सरोवर परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण और उससे होने वाले विस्थापन के खिलाफ नर्मदा घाटी में संघर्ष 1961 में शुरू हुआ जब 6 आदिवासी गांवों की ज़मीने केवडिआ कॉलोनी के लिए अधिगृहित की गयी।  केवडिआ कॉलोनी गुजरात में सरदार सरोवर परियोजना के लिए बनायी गई आवास कॉलोनी है, जो अब विश्व के सबसे ऊँची प्रतिमा, स्टेचू ऑफ़ यूनिटी के लिए मशहूर है। इसके बाद 1979 में मध्य प्रदेश में बांध की ऊंचाई घटाने की मांग को लेकर एक शक्तिशाली आंदोलन, निमाड़ बचाओ आंदोलन खड़ा हुए और नर्मदा घाटी नव  निर्माण समिती की स्थापना भी हुई और उसके बाद नर्मदा बचाओ आंदोलन का आगाज़ हुआ, जिसने परियोजना को पूरी तरह से रोकने की मांग रखी। सरदार सरोवर परियोजना के खिलाफ संघर्ष अब देश का सबसे लंबे  चलने वाले बांध-विरोधी संघर्षों में से एक है। 

यहाँ आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ महत्वपूर्ण सदस्यों की तस्वीरें साझा की गई हैं। मैंने शुरुआत उन तस्वीरों से की है जो मैंने नर्मदा आंदोलन के इस मौखिक इतिहास को रिकॉर्ड करने के अपने सफर के दौरान खींची थी। लेकिन मैं इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सभी लोगों का साक्षात्कार या तस्वीर नहीं ले पाई हूँ, जो करना किसी भी एक व्यक्ति के जीवन काल में संभव नहीं है। ऐसा इसलिए भी हैं क्योंकि नर्मदा आंदोलन जैसे कई दशकों से चले आ रहे शक्तिशाली संघर्ष में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्होंने असाधारण योगदान दिया है और उन सभी लोगों के इतिहास को दर्ज करना लगभग असंभव है।

इसलिए मैं उन तस्वीरों को भी साझा कर रही हूं, जिनके स्रोत का अभी मुझे पता नहीं है। मैं फिलहाल इन तस्वीरों को @NBACollection के नाम से साझा कर रही हूं। लेकिन किसी फोटो के स्रोत के बारे में मुझे जानकारी मिलने पर उसका श्रेय उसके फोटोग्राफर को विधिवत रूप से दिया जाएगा।

नर्मदा घाटी, उसके लोगों और संघर्ष के कार्यक्रमों की आंदोलन के आरंभिक वर्षों की तस्वीरों को साझा करने में एक बड़ी चुनौती यह है कि उस वक़्त डिजिटल फोटोग्राफी उपलब्ध नहीं थी। कैमरा भी इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं था।  उस वक़्त आंदोलन में सक्रिय रहे लोगों, आंदोलन से जुड़े स्थानों तथा कार्यक्रमों की तस्वीरों इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इन यादों को शब्दों के साथ साथ तस्वीरों के ज़रिये भी पेश करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि सरदार सरोवर परियोजना के कारण नर्मदा नदी के किनारे बसे कई गांव अब डूब चुके हैं और खुद नर्मदा नदी का स्वरुप भी अब बदल चुका है। आंदोलन के कई संस्थापक और सक्रिय सदस्य या तो अब दुनिया में नहीं है या काफी बुज़ुर्ग हो चुके हैं। लेकिन आंदोलन, नर्मदा नदी और उसके लोगों पर 1990 के दशक में कुछ फिल्में बनाई गयी थी, और चार फिल्म निर्माताओं ने उन अपनी फिल्मों से घाटी, घाटी के लोगों और आंदोलन के कार्यक्रमों की शुरुआती वर्षों की तस्वीरें इस्तेमाल करने की इजाज़त दी है। यह फिल्म निर्माता और उनकी फिल्में हैं: 1. के पी ससी की ‘ए वैली रेफ्युसेस टू डाई’ 2. सिमंतिनी धुरू और आनंद पटवर्धन की  ‘नर्मदा डायरी’ और 3. अली काज़मी की ‘ए वैली राइसेस’। इन फिल्मों से ली गई संघर्ष के महत्वपूर्ण सदस्यों की तस्वीरों का श्रेय यहां इन फिल्मों को दिया जाएगा।

मैं आंदोलन के समर्थकों, जिन्होंने तस्वीरें खींची थी या घाटी या आंदोलन पर फिल्म बनाई थी, उनसे मिलने वाली तस्वीरों को यहां साझा करने की कोशिश जारी रखूंगी।