स्वर्गीय गंगाराम (बाबा) यादव

डूब-प्रभावित गांव छोटाबड़ादा, मध्य प्रदेश

मैंने भी गुजराती में लिखा हुआ इतिहास देखा था…रामायण सरी का था ग्रन्थ, बड़ा…और उसमें मिला मेरे को कि मणिबेली की जो भूमि है यहाँ पर महादेव ने खुद तपस्या की थी। उस ग्रंथ से मुझे पता लगा कि ब्रह्महत्या का पाप लगा था महादेव पर और ब्रह्महत्या का पाप धोने के लिए पूरे संसार में घूम आए लेकिन कहीं भी उनके त्रिशूल पर जो खून लगा था वो नहीं निकला और इसी ज़मीन पर आकर उन्होंने तपस्या की, मणिबेली में आकर जब उन्होंने त्रिशूल गाड़ा तो जो खून था वो साफ़ हो गया और वहां से एक लिंग निकला और लिंग की स्थापना वहां खुद महादेव ने अपने द्वारा की, और इसकी वजह से वहां के शूल्पनेश्वर मंदिर का नाम शूल्पनेश्वर महादेव रखा…लोग बताते हैं कि आज भी अश्वत्थामा रोज़ महादेव के यहां दीपक लगाता है, मेरे को तो नहीं दिखा, झूठ क्यों बोलना, जो बात सत्य हो वही बोलना, लेकिन पुराने लोगों का कहना है कि रोज़ शूल्पनेश्वर मंदिर में दीपक लगाने के लिए अश्वत्थामा आता है और दीपक लगा कर चला जाता है।

गंगारामबाबा यादव

नर्मदा बचाओ आंदोलन के सबसे मुश्किल समय में मणिबेली के संघर्ष को अपना जीवन समर्पित करने वाले आंदोलन के सबसे जुझारू सदस्यों में से एक, गंगारामबाबा इस साक्षात्कार में नर्मदा नदी के किनारे बसे मणिबेली गांव के उस शूल्पनेश्वर मंदिर की दिव्यता का वर्णन करते हैं जो अब सरदार सरोवर बांध के पानी में जलमग्न हो चुका है। “विकास” के नाम पर हमारे ऐतिहासिक और भव्य मंदिरों को किस तरह से बर्बाद किया गया है इसे जानने में रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए इस छोटी क्लिप को सुनना बहुत ज़रूरी है।    

साक्षात्कार की अवधि:
0:03:25

भाषा:
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