उषा

स्वाश्रया बड़ोदा, गुजरात

मेरा नाम उषा है। मैं बड़ोदा से आई हूँ, मैं वहाँ GIDC में रहती हूँ। हम पिछले 10 सालों से वहाँ रह रहे हैं। नगर पालिका ने कोई नोटिस नहीं दिया, उन्होंने हमें कुछ नहीं बताया। पुलिस आई और हमारे घर तोड़ दिए। उस दिन सूरज इतना तेज था कि किसी माँ को भी बच्चा बोझ लगे… हमारे पानी के घड़े तोड़ दिए गए, हमारे बर्तन फेंक दिए गए। उन्होंने हथौड़े लाए, हमारी दीवारें तोड़ दीं, हमारे जलावन की लकड़ियाँ फेंक दीं…हमने कहा, भाई, हम गरीब हैं। हमें रहने दो। आप हमें क्यों निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा, तुम कहाँ से आए हो। हमने कहा, हमारा देश बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि अपने देश वापस चले जाओ। हमने जवाब दिया, हमें अपने देश से निकाल दिया गया, इसलिए हम इस परदेश में आए हैं। हम यहाँ क्यों आएँ वरना? यह सरकारी जमीन है। सरकार आपको यहाँ रहने नहीं देगी, यह उनका अंतिम जवाब था…वे आए और हमारे घर तोड़ दिए। हम देखते रहे। हम निगम कार्यालय गए। उन्होंने हमारी नहीं सुनी। हमने अहमदाबाद में एक केस दर्ज किया। हम सुनवाई के लिए भी गए। केस अभी भी चल रहा है…हमारी बस्ती में बिजली या पानी नहीं है। सारा दुनीया का कचरा हमारे दरवाजे पर फेंका जाता है। यह बदबू मारता है, बीमारियाँ बस्ती में फैलती हैं। हम वहाँ खराब हालात में रहते हैं, गरीबों का कोई दर्जा नहीं है…