राकेश दीवान

वरिष्ठ पत्रकार और नर्मदा बचाओ आंदोलन के संस्थापक सदस्य भोपाल, मध्य प्रदेश.

राकेश दीवान और नर्मदा संघर्ष के दस्तावेज़ीकरण की अहमियत पर उनके विचार

राकेश, मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार, नर्मदा नदी के किनारे पले-बढ़े और बचपन से ही इस नदी और इसके संघर्षों के साक्षी रहे हैं। पिछले कई दशकों से वे प्रदेश की अनेक सामाजिक और पर्यावरणीय पहलों से गहराई से जुड़े रहे हैं, विशेषकर नर्मदा पर बनने वाले बड़े बाँधों से संबंधित संघर्षों से।

उनकी शुरुआती और महत्त्वपूर्ण पहलों में से एक रही विदूषक कारखाना—शहडोल ज़िले का एक सामुदायिक संगठन। यह समूह स्थानीय विकास, संसाधन प्रबंधन, संस्कृति और इतिहासके आधार पर लोगों को अपनी विकास योजनाएँ स्वयं बनाने में सहयोग करता था।

राकेश ने सर्वोदय प्रेस सर्विस (SPS), जो कि 60 वर्ष पुरानी गाँधीवादी वैकल्पिक समाचार एवं फीचर एजेंसी है, में भी अहम भूमिका निभाई है। वे इसके संपादक रहे और आज भी इसके प्रेरक शक्ति बने हुए हैं।

नर्मदा पर बाँधों के संघर्ष से उनका जुड़ाव मिट्टी बचाओ आंदोलन से शुरू हुआ, जो तवा बाँध की नहरों से हुई गंभीर जलभराव की समस्या के कारण खड़ा हुआ था। सन् 1970 के अंतिम वर्षों और 1980 के शुरुआती दौर से ही वे सरदार सरोवर बाँध के प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण, लेखन और विरोध में सक्रिय हो गए थे—उस समय जब नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) ने औपचारिक रूप नहीं लिया था। अख़बारों में लिखकर, क्षेत्रीय बैठकों में शामिल होकर और सीमित संचार साधनों के दौर में देशभर के पत्रकारों से नेटवर्क बनाकर, उन्होंने इस मुद्दे को व्यापक समाज तक पहुँचाने का काम किया। एनबीए के गठन और उसके संचालन में उनका योगदान बेहद महत्त्वपूर्ण रहा।

वे नर्मदा सपोर्ट ग्रुप बनाने में भी अग्रणी रहे, ख़ासकर मध्यप्रदेश में। उनका गृहनगर होशंगाबाद इस संदर्भ में एक मज़बूत केन्द्र बना, जो कई मायनों में स्वयं एनबीए का ही विस्तार था।

मिट्टी बचाओ आंदोलन से लेकर सरदार सरोवर बाँध के ख़िलाफ़ दशकों लंबे संघर्ष तक, राकेश दिवान नर्मदा घाटी और उसके लोगों के लिए एक अडिग आवाज़ और अथक योद्धा बने रहे।

राकेश दीवान अपने घर और कार्यालय में, भोपाल, मध्य प्रदेश में।फोटो क्रेडिट: नंदिनी ओझा

साक्षात्कार की अवधि:
00:23:35

भाषा:
हिंदी, उपशीर्षक: अंग्रेज़ी

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