अहिंसा कन्वर्सेशन्स #62 7th May 2021

जब लोग अपने खुद के जीवन के अधिकार के लिए संघर्ष करते हैं तो उन्हें दूसरों के जीवन के अधिकार का भी सम्मान करना होता है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में अपने कई वर्षों के अनुभव के आधार पर नंदिनी ओझा इस कार्य पथ को अपनाने की जटिलता और कठिनाइयों की चर्चा करती हैं

व्याख्यान पर फीडबैक:
* देवर्षि दासगुप्ता @sanitydurast: सरदार सरोवर बांध किस तरह स्थानीय लोगों और उनकी संस्कृति के लिए मौत का कफन बन गया है, इसके बारे में बात करते हुए @OzaNandini को सुनते हुए खुशकिस्मत, लेकिन साथ ही दुखी भी महसूस कर रही हूँ। विशेष रूप से एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा बांधों से बंधी नर्मदा के जलाशय को “सूजी हुई लाश” कहकर पुकारे जाने ने दिल को छुआ लिया। यह महत्वपूर्ण है कि स्कूल (और परिवार) अपने बच्चों को इस तरह के मौखिक इतिहास से अवगत कराएं ताकि वे हमारी इस “प्रगति” के बारे में ज़्यादा गहरा और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण पैदा कर सके। बांध सिर्फ “आधुनिक भारत के मंदिर” नहीं हैं।

*डॉ फ्लेउर डिसूजा इंस्टाग्राम पर mamathefleur: नर्मदा घाटी के बेजुबानों का अद्भुत और विस्तृत परिचय।

*बेनाम: “मौखिक इतिहास की शैली किस तरह से उपयोगी हो सकती है, इस पर अत्यंत व्यापक प्रस्तुति, इसे YouTube पर डाला जाना चाहिए”।