नर्मदा नदी भारत की पश्चिम दिशा की तरफ बहने वाली सबसे लंबी नदी है, जो तीन पश्चिमी राज्यों – गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र – से हो कर गुज़रती है। सरदार सरोवर परियोजना नर्मदा पर बनने वाला अंतिम (टर्मिनल) बाँध है जो गुजरात में स्थित है, और यह नर्मदा घाटी विकास योजना का एक हिस्सा है, जिसके तहत 30 बड़े, 135 मध्यम और 3000 छोटे बांध बनाये जाने की योजना है।
सिर्फ सरदार सरोवर से ही 245 गांव प्रभावित हुए हैं जिनकी आबादी दो लाख पचास हज़ार के करीब है, जिसमें से ज़्यादातर आदिवासी और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अन्य समुदायों के परिवार हैं। इसके अलावा परियोजना से जुड़े अन्य बुनियादी कार्यों जैसे नहरों, परियोजना प्रभावितों के लिए पुनर्वास स्थल, बांध से नीचे नदी के हिस्से में प्रभाव, आदि के कारण और दो लाख पचास हज़ार की आबादी विपरीत रूप से प्रभावित हुई है और कुछ विस्थापित भी हुए है। अगर नर्मदा पर बनने वाले बाकी के सभी बांधों को साथ में देखा जाए, तो दस लाख से अधिक लोग या तो विस्थापित होंगे या अपना रोज़गार खो देंगे। यह परियोजना प्रभावित लोग ही नर्मदा बचाओ आंदोलन की नींव हैं, जो सरदार सरोवर परियोजना का विरोध करने वाला एक सशक्त जन आंदोलन है। लोगों और समुदायों पर होने वाले बुरे प्रभावों के साथ-साथ इस परियोजना का पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर भी विपरीत असर होने वाला है।
दूसरी तरफ, सरदार सरोवर परियोजना को गुजरात की जीवन-रेखा/डोर बताया जा रहा है, जिसके तहत अट्ठारह लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि को सिंचित करने, बिजली पैदा करने और राज्य के तेरह हज़ार गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने की योजना बताई गई है। सरकार का दावा है कि गुजरात के जल संकट को सुलझाने का इस परियोजना के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। इस दावे को नर्मदा बचाओ आंदोलन और कई अन्य विशेषज्ञों ने चुनौती दी है।