डूब प्रभावित गांव पीपरी, मध्य प्रदेश (म. प्र.)
शांताबेन यादव नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख महिला नेताओं में से हैं। उन्होंने आंदोलन में बहुत अहम भूमिका निभाई है, जिसमें वर्ष 1990-91 में गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित फेरकुवा पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के महाकूच के दौरान उनके द्वारा किया गया अनिश्चितकालीन अनशन भी शामिल है।
उनके लंबे साक्षात्कार से ली गई इस छोटी क्लिप में शांताबेन वर्ष 1990 में पद्म विभूषण स्वर्गीय बाबा आमटे के आनंदवन (महाराष्ट्र) स्थित अपने घर से नर्मदा घाटी में आने का विस्तार से विवरण करती हैं। बाबा ने नर्मदा बचाओ आंदोलन में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और मध्य प्रदेश के कसरावद में बसने का फैसला करते हुए, घोषणा की थी, “मैं डूब जाऊंगा लेकिन हटूँगा नहीं” और सरकार से सरदार सरोवर परियोजना को रद्द करने की मांग की थी। बाबा आमटे जैसी प्रमुख हस्ती के आंदोलन में शामिल होने से नर्मदा बचाओ आंदोलन को न सिर्फ बहुत मजबूती हासिल हुई बल्कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की मांगों की तरफ बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान भी आकर्षित हुआ। बाबा आमटे जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त और मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित शख्सियत के सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित 245 गांवों में से एक गांव, कसरावद में बसने के कारण, कसरावद मध्य प्रदेश में आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया। इसकी वजह से कसरावद और उसके लोगों को, बांध पूरा करने की ज़िद पर अड़ी सरकार की ओर से अप्रत्यशित दमन का सामना करना पड़ा। पूरे आंदोलन के लिए आदर्श बनते जा रहे इस गांव की एकता और संघर्ष को तोड़ना सरकार के लिए बहुत ज़रूरी हो गया। इसके चलते, न सिर्फ गांव के निवासियों को, बल्कि खुद बाबा आमटे और उनकी धर्मपत्नी, स्वर्गीय साधना ताई को भी लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से राज्य में भारतीय जनता पार्टी के सुंदरलाल पटवा के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान। लेकिन अपनी बढ़ती उम्र और बिगड़ते स्वस्थ्य के बावजूद, बाबा आमटे और साधना ताई कसरावद में डटे रहे और अपना संघर्ष जारी रखा।
इस साक्षात्कार में शांताबेन, बाबा के कासरवाद में एक दशक रहने के बाद, इसे छोड़कर आनंदवन (महाराष्ट्र) वापस लौटने से जुड़ी घटनों का वर्णन भी करती हैं। महत्वपूर्ण रूप से, वे बाबा के लौट जाने पर नर्मदा घाटी के लोगों पर होने वाले प्रभाव की चर्चा करती हैं और समझाती हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री, दिग्विजय सिंह ने किस तरह इस घटना का आंदोलन के खिलाफ सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। घाटी में झूठी अफवाहों और आरोपों के प्रचार, इसके बाद राज्य द्वारा किए गए दमन और लोगों द्वारा नगद मुआवज़ा स्वीकार किए जाने और इसके वजह से डूब प्रभावित गांवो के सामाजिक तानेबाने के तीतर-बितर होने का शांताबेन विस्तार से वर्णन करती हैं।
यह साक्षात्कार हमारी यह समझने में मदद करता है कि किसी मशहूर हस्ती के आंदोलन से जुड़ने से जहाँ एक तरफ आंदोलन को ऊर्जा और मजबूती तो मिलती है, लेकिन एसी प्रभावी हस्ति के जाने के बाद आंदोलन को बड़ा धक्का भी लगता है, और अगर आंदोलन इस घटना से कुशलता से नहीं निपट पाता है तो इस झटके से उबरना और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है।
क्लिप की अवधि: 00:36:52
भाषा: मूल साक्षात्कार निमाड़ी में, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
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