“माहकाय सरदार सरोवर बांध आधुनिक समय में शक्तिशाली लोगों के हाथों में शस्त्रागार है, जो आक्रमणकारियों के पक्ष में बिना किसी भी रक्तपात या जान हानी या संपार्श्विक क्षति के, हाशिए पर रहने वालों के सीमित संसाधनों को भी शक्तिशाली लोगों तक पहुंचाता है. यह संघर्ष इस एकतरफा शस्त्रागार के खिलाफ है जो नर्मदा घाटी के लोग शुरू से ही असमान स्थिति में लड़े, जहां उनके पास लड़ने के लिए केवल उनकी जीभ /ज़ुबान/आवाजें थीं, ” नंदिनी ओझा।
नर्मदा आंदोलन के इस मौखिक जन इतिहास को योजनाबद्ध और संकलित नंदिनी ओझा द्वारा किया गया है, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक कार्यकर्ता रह चुकी हैं। इस मौखिक इतिहास के लिए साक्षात्कारों की रिकॉर्डिंग, संपादन और प्रबंधन नंदिनी द्वारा किया गया है। बड़ी संख्या में लोगों और संगठनों द्वारा दिए गए समर्थन के लिए कृतज्ञतापूर्ण आभार।
नंदिनी ओझा, पूर्व में ओरल हिस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया ओरल हिस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया की अध्यक्षा (2020-22) रही हैं। साथ-साथ वह एक शोधकर्ता, लेखिका, इतिहासकार और संकलनकर्ता हैं। उन्होंने सशक्त जन आंदोलन के रूप में उभरने वाले नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता के रूप में 12 वर्ष काम किया है। उनकी द्वारा लिखी गई पुस्तकें अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी भाषा में रूपा पब्लिशिंग हाउस, राजहंस प्रकाशन, ओरिएंट ब्लैकस्वॉन, राजकमल प्रकाशन और मेहता पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित की गई हैं। दिसंबर 2017 में, उन्हें संगम हाउस, नृत्यग्राम, बैंगलोर द्वारा प्रतिष्ठित राइटर्स रेजीडेंसी के लिए चुना गया था।
कार्यक्रम आयोजक, आगा खान ग्रामीण सहयोग कार्यक्रम (आई) (1987-88)
1987 में सामाजिक कार्य में अपनी स्नातकोत्तर पदवी पूरी करने के बाद, नंदिनी ओझा ने दो दशकों से ज़्यादा समय तक, गैर-सरकारी संस्थाओं और जन आंदोलनों में एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया। संगठन में उनकी भूमिका गुजरात के कुछ सूखाग्रस्त इलाकों में साझा स्वामित्व वाले संसाधनों के प्रबंधन के लिए लोगों को एकजुट करने की थी। वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रमों के ज़रिये मिट्टी और पानी के संरक्षण; पर्यावरण संरक्षण; सामाजिक वानिकी; बायोगैस; कृषि विज्ञान प्रचार; पशुपालन, बागवानी और चारे की सामुदायिक खेती आदि के ज़रिये आमदनी देने वाले कार्यक्रमों के लिए लोगों को जुटाना इस कार्य का हिस्सा था।
अध्ययन दौरा (वर्ष 1989)
नंदिनी ने गैर-सरकारी संगठनों और जन आंदोलनों का अध्ययन करने के लिए देश के पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और बिहार) का दौरा किया। उन्होंने यह दौरा देश के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर समझने और इन मुद्दों पर काम करने वाले कई समूहों/संगठनों और आंदोलनों को जानने के लिए किया था।
पूर्णकालिक कार्यकर्ता, नर्मदा बचाओ आंदोलन, (1990-2001)
नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता के रूप में, नंदिनी ओझा ने नर्मदा नदी पर बन रहे विशालकाय सरदार सरोवर बांध से प्रभावित लोगों के बीच रह कर काम किया। नर्मदा बचाओ आंदोलन में उनकी प्रमुख ज़िम्मेदारी, पहले के तीन वर्षों के दौरान मध्य प्रदेश में और बाद के आठ वर्ष गुजरात में, सरदार सरोवर से प्रभावित लोगों को एकजुट करने और संगठन को मज़बूत बनाने और संगठन के कार्यक्रमों, धरनों और रैलियों के आयोजन में मदद करना थी। वह तीनों राज्यों में आंदोलन द्वारा आयोजित सामूहिक कार्यक्रमों का हिस्सा रही थी, खासकर राज्य द्वारा दमन किये जाने और गांवों के जलमग्न होने वाले वर्षों के दौरान। इन सामूहिक कार्यक्रमों के अलावा आंदोलन ने परियोजना के विपरीत परिणामों को कई मंचों के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें विश्व बैंक, सर्वोच्च न्यायालय, और कई सरकारी और स्वतंत्र समितियां शामिल थीं। इस काम के तहत, नंदिनी ने इस विषय का गहन अध्ययन और दस्तावेज़ीकरण भी किया। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन का प्रतिनिधित्व भी किया है। उन्होंने गुजरात में बड़े पैमाने पर सरदार सरोवर के मुद्दे को जनता के सामने रखने का काम किया है और इस मुद्दे पर जन सभाएं और बहस आयोजित करने में सहयोग दिया है। आंदोलन के लिए वित्तीय संसाधन इकठ्ठा करना भी उनकी ज़िम्मेदारियों में से एक था। नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता के रूप में वह अन्य आंदोलनों को समर्थन देने और उनके साथ समन्वय बनाने की गतिविधियों में भी शामिल थीं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन को राज्य और गैर-राज्य इकाइयों की ओर से कई मानवाधिकार उल्लंघनों का सामना करना पड़ा जिनमें पुलिस द्वारा गोलीबारी, मारपीट, लैंगिक दुर्व्यवहार और बलात्कार, राजनीतिक गुंडों द्वारा आंदोलन के दफ्तरों पर हमला, आम सभाओं में रुकावट पैदा किया जाना, सरकार द्वारा आवाजाही पर पाबन्दी लगाया जाना आदि शामिल था। आंदोलन में नंदिनी के कार्य का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मानवाधिकार उल्लंघनों को चुनौती देना था।
नंदिनी के आंदोलन से जुड़े काम ने उनकी राज्य और गैर-राज्य इकाइयों द्वारा की जाने वाली हिंसा को समझने में मदद की है जो मौजूदा प्रभावशाली विकास मॉडल का केंद्रीय आयाम बन गयी है।
2002 में वह नर्मदा बचाओ आंदोलन में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता की भूमिका से बाहर निकल आई पर उन्होंने नर्मदा घाटी में रहना जारी रखा, आंदोलन और प्रभावित समुदायों से नज़दीकी संपर्क बनाए रखा और अपना ज़्यादातर समय इस मौखिक इतिहास के संकलन में बिताया।
2002 के बाद, उन्होंने मध्य प्रदेश के बड़वानी में सरकारी कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम किया और दो साल तक सामाजिक कार्य विषय के स्नातकोत्तर के छात्रों को पढ़ाया।
2004 से, उनकी प्राथमिक रूचि और ध्यान मौखिक इतिहास दस्तावेज़ीकरण और विविध मुद्दों के बारे में लेखन पर रहा है। उनके लेखन का विषय सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी और विश्लेषण तथा समकालीन इतिहास रहा है। वह अभी भी सामाजिक और राजनीतिक बदलाव की अध्येता हैं और उनका लेखन इस पर और कार्यकर्ता के रूप में उनके अनुभव पर आधारित होता है। वह काल्पनिक और वास्तविक, दोनों तरह के लेखन में रुचि रखती हैं, यह मानती हैं की सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण माध्यम है और उसका अर्थपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करती हैं। 2017 में, उन्हें बेंगलुरु के संगम हाउस द्वारा राइटर्स रेजीडेंसी के लिए चुना गया था।
मौखिक इतिहास का दस्तावेज़ीकरण
2004 से नंदिनी का ध्यान प्राथमिक रूप से सरदार सरोवर परियोजना के खिलाफ नर्मदा घाटी के लोगों के आंदोलन का मौखिक इतिहास संकलित करने पर केंद्रित रहा है। इसके तहत उन्होंने आंदोलन के प्रमुख स्थानीय तथा घाटी के बाहर से आने वाले नेताओं की आवाज़ों को रिकॉर्ड किया है। फिलहाल वह इस संकलित मौखिक इतिहास को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करने का कार्य कर रही हैं। यह वेबसाइट इसी कार्य का नतीजा है। और “लढा नर्मदेचा” (नर्मदा के लिए संघर्ष) शीर्षक वाली, नर्मदा बचाओ आंदोलन के दो आदिवासी नेताओं के मौखिक इतिहास पर आधारित 2017 में राजहंस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मराठी पुस्तक भी इसी कार्य का हिस्सा है।
अब वह इस संकलित मौखिक इतिहास पर आधारित पुस्तकों की श्रृंखला की अपनी दूसरी पुस्तक पर काम कर रही हैं। यह दूसरी पुस्तक श्री गिरीषभाई पटेल के साथ रिकॉर्ड किये गए मौखिक इतिहास पर आधारित है जो आज़ादी से लेकर 2017 तक गुजरात के सामाजिक-राजनीतिक और विकासात्मक इतिहास का विश्लेषण करती है तथा इसमें सरदार सरोवर-नर्मदा परियोजना को गुजरात के विकास मॉडल के केंद्र में रखा गया है।
पुस्तकें
व्हिदर जस्टिस – स्टोरीज ऑफ़ वीमेन इन प्रिज़न ( मुरझाया न्याय – जेल में कैद महिलाओं की कहानियां)
नंदिनी ओझा की पहली पुस्तक, “व्हिदर जस्टिस – स्टोरीज ऑफ़ वीमेन इन प्रिज़न”, 2006 में रूपा द्वारा प्रकाशित की गई थी। रूपा ने 2017 में इस पुस्तक का किंडल संस्करण भी जारी किया है।
“व्हिदर जस्टिस – स्टोरीज ऑफ़ वीमेन इन प्रिज़न” का 2012 में मराठी अनुवाद किया गया था और यह मराठी संस्करण मेहता पब्लिशिंग हाउस, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया। यह संस्करण यहां उपलब्ध है:
लढा नर्मदेचा
नंदिनी की अगली पुस्तक “लढा नर्मदेचा” (नर्मदा के लिए संघर्ष) जो नर्मदा बचाओ आंदोलन के दो आदिवासी नेताओं के मौखिक इतिहास पर आधारित है, 2017 में राजहंस प्रकाशन द्वारा मराठी में प्रकाशित की गयी है ।
अन्य लेखन
इतिहास, मानवाधिकार और पर्यावरण के मुद्दों पर नंदिनी के लेख द वायर, ईपीडब्ल्यू, काउंटरव्यू, इंडिया टुगेदर, द रायट, डाउन टू अर्थ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
ब्लॉग
नंदिनी दो ब्लॉग संभालती/लिखती हैं:
अन्य कार्य
नंदिनी जन नीति के मुद्दों पर अध्ययन और पैरोकारी का काम करने वाली कई संस्थाओं के बोर्ड की सदस्य हैं जिनमें मंथन अध्ययन केंद्र, B.I.R.S.A और ग्रीनपीस भारत शामिल हैं।
2004 से नंदिनी ज़िंदाबाद ट्रस्ट की सचिव रही हैं जो देशभर में हो रहे मानवाधिकार और पर्यावरण से जुड़े हुए कार्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।