वेबसाइट के पाठकों द्वारा फीडबैक
वाटर प्रैक्टिशनर नेटवर्क
को अपने पाठकों के समक्ष संघर्ष और सहनशीलता की यह कहानियां प्रस्तुत करते हुए ख़ुशी महसूस हो रही है। लोगों के नदी के साथ सह-अस्तित्व और स्नेह के संबंध को नर्मदा के इस मौखिक इतिहास में सुंदरता के साथ बयां किया गया है। वेबसाइट को ज़रूर देखिएगा।नर्मदा का मौखिक इतिहास
नर्मदा घाटी के कई दशकों के संघर्ष की यादों और जीवंत आवाजों को दर्ज करने का एक अभूतपूर्व प्रयास है। यह वेबसाइट लोगों के व्यक्तिगत इतिहास, यादों और बढ़ती चुनौतियों के खिलाफ अपने अस्तित्व के लिए किये गए जन संघर्ष की कहानियों का खजाना है। इसके संकलन का कठिन कार्य नंदिनी ओझा द्वारा किया गया है। नंदिनी ने पहले संघर्ष में एक सहभागी के रूप में और इसके बाद के कई वर्षों के दौरान अपनी कड़ी मेहनत से सार्वजनिक उपयोग के लिए इन मौखिक इतिहास कथाओं को रिकॉर्ड, संकलित और संपादित किया है। यह वेबसाइट एक ऐसा द्वार है जो हमें इस बांध से सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले लोगों के जीवन के अनुभवों की ओर ले जाता है। यह बड़े बांधों पर चली वैश्विक बहस पर लोगों के संघर्षों के गहरे प्रभाव को समझने में हमारी मदद करती है।
https://www.waterpractitioners.org/post/oral-history-narmada-the-lived-experiences-of-the-people-of-the-narmada-bachao-andolan
नये संसाधन के बारे में अलर्ट! नर्मदा आंदोलन का मौखिक इतिहास। नर्मदा बचाओ आंदोलन की पूर्व कार्यकर्ता, नंदिनी ओझा द्वारा संकलित यह वेबसाइट भारत में नर्मदा नदी पर बांध बनाने की योजना के खिलाफ एक शक्तिशाली जन संघर्ष के प्रमुख लोगों के मौखिक इतिहास का दस्तावेजीकरण करती है। इस मौखिक इतिहास में प्रभावित समुदायों के स्थानीय नेताओं की आवाजें शामिल हैं। भारत में नर्मदा घाटी में बड़े बांधों के खिलाफ खड़े हुए इस जन आंदोलन ने ‘विकास’ की आलोचना को वैश्विक स्तर तक ले जाने काम किया है। https://www.oralhistorynarmada.in
साउथ एशिया जर्नल ऑफ साउथ एशियन स्टडीज, यूएनएसडब्ल्यू, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया का संसाधन अलर्ट
अद्भुत और अनूठी वेबसाइट जो #नर्मदा आंदोलन के इतिहास पर प्रामाणिक जमीनी स्तर की आवाजों को प्रस्तुत करती है। बहुत ही उम्दा काम।
ट्विटर पर @Indian_Rivers द्वारा: बांधों, नदियों और लोगों पर दक्षिण एशिया नेटवर्क
विकास के नाम पर बनाए गए विशाल बांधों की वजह से जलमग्न होने वाले सदियों पुराने गांवों के समुदायों के व्यक्तिगत नुकसान के बारे में दुनिया को अवगत कराने के लिए आपके द्वारा समर्पित और निस्वार्थ भाव से किए गए कार्य से हम परिचित हैं। इन गरीब लोगों ने अपनी खास पहचान और जीवन शैली को हमेशा के लिए खो दिया है। अब जब यह अपरिवर्तनीय नुकसान हो चुका है, तब आपका यह प्रयास और भी प्रशंसा का हकदार है, क्योंकि इसके बिना आपके द्वारा इतनी मेहनत से रिकॉर्ड और लिपि बद्ध किये गए मौखिक विवरण हमेशा हमेशा के लिए खो जाते और भुला दिए जाते, और यादों के धुंधले होने के साथ-साथ बाहरी दुनिया इन समुदायों द्वारा किये गए व्यक्तिगत त्याग से अनजान और अपरिचित ही रह जाती। आपके इस कार्य के प्रति समर्पण को सलाम!
कप्तान आई.एन (सेवानिवृत्त) विजय प्रसाद, विट्ठलवाड़ी, पुणे, महाराष्ट्र की ओर से
आप में से कई लोगों ने बड़े बांधों के खिलाफ नर्मदा घाटी के संघर्ष के बारे में पढ़ा होगा, लेकिन क्या आपने इस आंदोलन की गाथा नर्मदा घाटी की ज़मीनी आवाजों के ज़रिये सुना है? नंदिनी ओझा की वेबसाइट मौखिक इतिहास के माध्यम से भारत के इस प्रतिष्ठित जन आंदोलन का दस्तावेजीकरण करती है। यह शायद भारत में एकमात्र ऐसा इतिहास है जहां इतिहास बताने वाले खुद इसके पीड़ित भी हैं और रक्षक भी!
अवली वर्मा, मंथन अध्ययन केंद्र, पुणे, महाराष्ट्र।
एक नई वेबसाइट, जो भारत के स्वतंत्रता के बाद के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक, नर्मदा घाटी में बड़े बांधों के खिलाफ संघर्ष के मौखिक इतिहास का दस्तावेजीकरण करती है। इस आंदोलन ने ‘विकास’ की आलोचनाओं को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर तक ले जाने का काम किया है, ऐसे कई और आंदोलनों को प्रेरित किया है, और (दूसरों के साथ) नए विकल्पों की खोज को आगे बढ़ाया है।
जहां तक मैं जानता हूं, यह भारत में किसी सामाजिक आंदोलन के व्यापक मौखिक इतिहास के संकलन का पहला ऐसा प्रयास है, और यह विशेष रूप से मूल्यवान है क्योंकि इस इतिहास में परियोजना से प्रभावित और आंदोलन के केंद्र में रहे स्थानीय समुदायों के कई लोगों की आवाज़ें शामिल हैं। इसकी निर्माता, नंदिनी, जो एक समय नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुख्य सदस्य थीं, ने इस काम को अपनी सालों की मेहनत और स्नेह दिया है, और इससे निकलने वाला परिणाम उल्लेखनीय है।
-आशीष कोठारी, कल्पवृक्ष – पर्यावरण कार्य समूह, पुणे, महाराष्ट्र
मैं अपनी राजनीतिक जागृति का श्रेय नर्मदा संघर्ष और इसके साथ अपने जुड़ाव को देता हूं। उस अनुभव के बीज ने दुनिया में बहुत सी चीजों के बारे में मेरी धारणा को बदल दिया और बदले में मुझे सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में सीखने और खुद को शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया, जो आगे जाकर मेरे जीवन के कई फैसलों का आधार बना।
नंदिनी ओझा नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता हुआ करती थीं, और हाल के वर्षों में वह नर्मदा संघर्ष के मौखिक इतिहास अध्ययन पर काम कर रही हैं ताकि आंदोलन के इतिहास को उन लोगों की आवाज़ के माध्यम से दर्ज किया जा सके जिन्हें आम तौर पर सुना नहीं जाता है। मौखिक इतिहास की शैली दूसरों के इन लोगों के बिनाह पर बोलने या इनकी कहानियों को प्रस्तुत किये जाने के बजाय, इनमें से कुछ लोगों को खुद अपने लिए बोलने का मौका देती है। मैंने अभी तक वेबसाइट की पूरी सामग्री नहीं देखी है पर मैं ऐसा करने के लिए काफी उत्सुक हूँ। आप में से कुछ जो नर्मदा बचाओ आंदोलन और संबंधित संघर्षों के काम और मुद्दों से प्रेरित हुए हैं या इनमें रुचि रखते हैं, उन्हें यह वेबसाइट रोचक लगेगी। मेरे कार्यक्षेत्र के कुछ साथी और मुक्त ज्ञान आंदोलन में रुचि रखने वाले लोग तथा विकिमीडिया पर मौखिक इतिहास को शामिल करने के प्रश्न से जुड़े लोगों को भी इस वेबसाइट में रुचि होगी।
सुब्बू शास्त्री, प्रिंसिपल सॉफ्टवेयर इंजीनियर, विकिमीडिया फाउंडेशन
दक्षिण एशिया @ लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
http:// https://blogs.lse.ac.uk/southasia/2020/01/13/giving-voice-to-the-marginalised-online-oral-history-and-the-sardar-sarovar-project-in-western-india/
कार्यकर्ता और लेखक, राहुल बनर्जी ने वेबसाइट पर मौजूद महिलाओं के मौखिक इतिहास के बारे में, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों से आने वाली महिलाओं के साक्षात्कारों के बारे में कहा है: “आदिवासी महिला कार्यकर्ता, यह सभी ज़मीनी विचारक हैं जिन्होंने इस मिथक को दूर करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन सिर्फ शहरी ख़यालियों द्वारा खड़ा किया आंदोलन था।”
के एल एम डॉयल, “बहुमूल्य और बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज। इसे आदिवासियों के खिलाफ अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति को सौंपा जाना चाहिए। एक वैकल्पिक ब्लू प्रिंट के रूप में भी, ताकि होने वाले नुकसान के बोझ को कम किया जा सके और आपस में बांटा जा सके। भविष्य की योजना के लिए व्यापक दस्तावेज़ीकरण के ज़रिये इस तरह की ऐतिहासिक गलती की कड़ी आलोचना की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार, मानव विकास, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और उत्पीड़ित वर्गों के खिलाफ अपराधों का भारत का ट्रैक रिकॉर्ड सभी को ज्ञात है। एक दशक पहले ऐसा नहीं था।”