जलमग्न गांव चिखल्दा, मध्य प्रदेश
“जब नर्मदा पर लोग नहाने आते थे, बैल गाड़ीयों से, तो हम गोबर इकट्ठा करते थे और हम उस गोबर को बेचते थे, तो हमने ऐसे ही कुछ गोबर 150-200 रुपये में बेचा था, उसके पैसे आये थे तो हमने नई साइकिल ली थी और उसी साइकिल से हम लोग पढ़ने जाया करते थे। नर्मदा पर जो पुल था, तो हमारे घर वाले तो हम पर चिल्लाते थे, लेकिन हम फिर भी वहां नहाने जाते थे…तीन टाइम। हम लोग डुबकी लगा लगा के पैसे (श्रद्धालुओं द्वारा नदी में फेंके गए) ढूंढते थे, और वे पैसे निकाल कर हम लोग किताब-कॉपी खरीदते थे, एक दो फिल्म देखते थे…”
महेश शर्मा
नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्पित पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं में से एक, महेश उस वक़्त आंदोलन में सक्रिय थे जब आंदोलन अपने चरम पर था और सरकार के तीव्र दमन का सामना कर रहा था। महेश मणिबेली के लोगों का साथ देने के लिए कई वर्षों तक मणिबेली में ही रहे, जो सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबने वाला पहला गांव था और लंबे समय तक आंदोलन की गतिविधियों का मुख्य केंद्र भी बना रहा। जब आंदोलन का संघर्ष नर्मदा नदी के ऊपरी इलाकों में फैला, तो महेश डोमखेड़ी में सक्रिय थे। इसके कारण महेश को सरकार के तीव्र दमन का सामना करना पड़ा और उन्हे कई बार जेल भी भेजा गया। महेश ने महाराष्ट्र के गांवों के आदिवासियों का डट कर साथ दिया, जो खुद नर्मदा बचाओ आंदोलन की सबसे मजबूत कड़ी थे। महेश खुद एक विस्थापित व्यक्ति और उनका गांव चिखल्दा, नर्मदा बचाओ आंदोलन का एक मजबूत गढ़ था। चिखल्दा बहुत विविधता-संपन्न गांव था, जो अब सरदार सरोवर बांध के पानी में डूब चुका है। इसमें कई सुन्दर मंदिर और मस्जिद और एक बहुत पुराना देरासर भी था। जलमग्न होने से पहले इनमें से किसी भी धर्मस्थल को सरकार द्वारा पुनर्स्थापित नहीं किया गया। बल्कि, इनके डूबने से पहले इन महत्वपूर्ण धर्मस्थलों में से किसी का भी कोई दस्तावेज़ीकरण नहीं किया गया। इस क्लिप में महेश भावुकता से अपने परिवार के बारे में बताते हैं जिन्हें होलकर राज्य के ज़माने से ही चिखल्दा के मंदिर में पुजारी का काम सौंपा गया था। नर्मदा घाटी के लोगों का नर्मदा नदी और उसकी ज़मीन से जो जुड़ाव है, उसे इस क्लिप के ज़रिये बखूबी समझा जा सकता है।
इस क्लिप में शामिल की गई तस्वीरों महेश के गांव के पास बने ऐतिहासिक राजघाट पुल की हैं जिसका ज़िक्र महेश अपने साक्षात्कार में करते हैं, और फिर उसके बाद उसके सरदार सरोवर बांध में डूब जाने से जुड़ी हैं। अन्य तस्वीरें चिखल्दा के उन मंदिरों की हैं जो बांध के पानी में डूब गए। 2020 में बांध के पानी के तेजी से नीचे उतरने के बाद यह मंदिर जलाशय में फिर से दिखाई दिए।
इस क्लिप की कुछ तस्वीरें गोलू सेन और रहमत ने ली है, दोनों चिखल्दा के ही निवासी हैं।
क्लिप की आवाज़ बहुत साफ़ नहीं है क्योकि इस साक्षात्कार को मिनी-डिस्क रिकॉर्डर के ज़रिये रिकॉर्ड किया गया था।
साक्षात्कार की अवधी:
0:08:52
भाषा:
हिंदी, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
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