जलमग्न गांव जलसिंधी, मध्य प्रदेश
“तिनिह मल के खुंडू दूदू और जलसिंधी के गंगू मोटू नर्मदा घाटी के जंगलों में अपने लोगों और मवेशियों के साथ रहा करते थे। उनका कहना था कि वे यहीं पैदा हुए थे। उनके कहने के अनुसार उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि जब नर्मदा माँ प्रकट हुई तो वे अमरकंटक से आई थीं। और हमने उन्हें यह कहते हुए सुना कि नर्मदा ने चिल्लिया और डुंगली से बनी सब्जी से अपना डब्बा भरा और अपनी यात्रा पर निकल पड़ी। नर्मदा नदी, अपनी बहनों के साथ, कुल सात बहनों के साथ दूदू दरिया, यानी सागर से मिलने रवाना हो गई। बाकी सब मैदानों के रस्ते गई लेकिन सती नर्मदा ने पहाड़ों का रास्ता चुना क्योंकि वे मैदानों के ज़रिये आ कर लोगों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहती थी। पहाड़ों और जंगलों से धीरे-धीरे गुजरते हुए, वे जलसिंधी पहुंची और रात को वही पड़ाव डाला…”
बावा महारिया ।
बावा महारिया, नर्मदा बचाओ आंदोलन के ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने गांव जलसिंधी के सरदार सरोवर के पानी में बार-बार डूबने के बावजूद गांव को छोड़कर जाने से इनकार कर दिया है। नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले लोगों का नर्मदा और अपनी ज़मीनों से एक गहरा रिश्ता है। जैसे जैसे बांध का पानी उनके खेतों, घरों और उनके गांव जलसिंधी को डूबाता हुआ ऊपर चढ़ता गया, वैसे वैसे बावा और उनका परिवार का पहाड़ के ऊंचे और फिर और ऊंचे स्थान पर घर बसता रहा, लेकिन उन्होंने नर्मदा नदी से दूर जाकर पुनर्वास लेने से इनकार कर दिया। अपने इस महत्वपूर्ण साक्षात्कार में बावा नर्मदा नदी, उसके किनारे बसे अपने गांव जलसिंधी और उनके ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व के बारे में चर्चा करते हैं।
साक्षात्कार की अवधी:
00:24:34
भाषा:
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