नर्मदा घाटी के लोगों के लिए नर्मदा नदी देवी या मां है। या नमामी देवी नर्मदे या फिर नर्मदा मैया है। इन ऑडियो-वीडियो क्लिप में नर्मदा बचाओ आंदोलन के दिग्गज नेता और सरदार सरोवर परियोजना से विस्थापित होने वाले व्यक्ति सरदार सरोवर बांध बनने के पहले मुक्त बहने वाली अगाध नर्मदा नदी के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हैं। यह आवाज़ें और नर्मदा और इसके किनारे रहने वाले लोगों के जीवन से जुड़ी तस्वीरें, नदी के स्वछंद बहाव के महत्व को रेखांकित करती हैं। अपने इन वक्तव्यों में सभी यह बताते हैं कि किस प्रकार नर्मदा और उसके किनारे बसे लोगों की ज़िंदगियाँ आपस में गुथ्थम-गुथ्था रही हैं, चाहे सामाजिक स्तर पर हो या सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक स्तर पर। यह सभी साक्षात्कार हमारी यह समझने में मदद करते हैं कि किस तरह एक आज़ाद बहने वाली नदी को विशालकाय बांध बनाकर ठहरे पाने के जलाशय में बदला जाना, उन लोगों की जीवनशैली को बर्बाद कर देता हैं जो इस प्राचीनतम नदी सभ्यता के वंशज हैं। इन आवाज़ों के पीछे की गहन सोच हमें सरदार सरोवर के निर्माण के पहले की नर्मदा नदी और लोगों के बीच के गहरे रिश्ते के बारे में बताती है। इन साक्षात्कारों को विशेष रूप से उन लोगों को ज़रूर सुनना चाहिए जो सरदार सरोवर बांध के निर्माण के पहले स्वछंद बहने वाली नर्मदा नदी के बारे में जानने की रुचि रखते हैं।
सीताराम (भाई) पाटीदार
जलमग्न गांव कडमाल, मध्य प्रदेश
नर्मदा बचाओ आंदोलन के दिग्गजों में से एक, स्वर्गीय सीतारामभाई पाटीदार का हाल ही में, सितम्बर 2021 में निधन हुआ। खुद एक विस्थापित होने के नाते, सीतारामभाई इस साक्षात्कार में आज़ाद बहने वाली नर्मदा नदी के महत्त्व को बहुत ही स्पष्ट रूप से समझाते हैं। वे सरदार सरोवर के निर्माण के पहले, जब नर्मदा सिर्फ एक जलाशय बन कर नहीं रह गयी थी, उस वक़्त की नर्मदा नदी के कई पहलुओं पर चर्चा करते हैं। सीतारामभाई का यह साक्षात्कार, विशालकाय बांधों के विनाशकारी होने और नदियों को स्वछंद बहने दिए जाने के तर्कों की पुष्टि करता है।
साक्षात्कार की अवधी: 0:36:35
भाषा: हिंदी और निमाड़ी, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
बावा महारिया
जलमग्न गांव जलसिंधी, मध्य प्रदेश
खेडूत मज़दूर चेतना संगठ और नर्मदा बचाओ आंदोलन के अग्रणी नेता, बावा महारिया अपने इस साक्षात्कार में अपने गांव जलसिंधी से हो कर गुज़रने वाली नर्मदा नदी से जुड़ी, आदिवासियों की सांस्कृतिक, पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं की चर्चा करते हैं। नर्मदा नदी के किनारे मध्य प्रदेश में बसा उनका गांव जलसिंधी, सरदार सरोवर के पानी में जलमग्न हो गया। और गांव के साथ-साथ, आदिवासियों के लिए महत्व रखने वाले कई धार्मिक स्थल बिना किसी पुनर्स्थापन या दस्तावेज़ीकरण के लुप्त हो गए।
साक्षात्कार की अवधी: 0:24:34
भाषा: भिलाली, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
प्रभु (भाई) तड़वी
गांव वाघड़िया, केवड़िया कॉलोनी, गुजरात
नर्मदा बचाओ आंदोलन के सबसे निडर नेताओं में से एक, स्वर्गीय प्रभुभाई तड़वी का हाल ही में, अप्रैल 2021 में निधन हुआ। सरदार सरोवर की आवासीय कॉलोनी – केवड़िया कॉलोनी बनाने के लिए नर्मदा नदी के किनारे बसे अपने गांव वाघड़िया के आदिवासियों की भूमि लिए जाने के पहले के आदिवासियों के जीवन का वर्णन प्रभुभाई ने अपने इस साक्षात्कार में किया है। सरदार सरोवर बांध और इसकी आवासीय कॉलोनी के निर्माण के पहले के आदिवासी जीवन को समझने में रुचि रखने वालों को यह साक्षात्कार ज़रूर सुनना चाहिए। केवड़िया कॉलोनी के निर्माण के लिए 1961 में ही अपनी ज़मीनें खोने वाले वाघड़िया के आदिवासियों को कभी पुनर्वास नहीं दिया गया। आज केवड़िया कॉलोनी यहां बनी दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा, स्टेचू ऑफ़ यूनिटी के लिए विश्व प्रसिद्द है। लेकिन आदिवासी समुदाय, जो यहां के मूल निवासी हैं और आज भी अधिग्रहित भूमि के इर्दगिर्द अपनी ज़िंदगियां जी रहे हैं, उन्हें अब और पीछे धकेला जा रहा है, क्योंकि उनके पास जो थोड़ी बहुत अधिग्रहित ज़मीन बची हैं, उन्हें भी अब अमीर और ताकतवर लोगों के पर्यटन के लिए छीना जा रहा है।
साक्षात्कार की अवधी: 0:43:44
भाषा: गुजराती, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
छगन (भाई) केवट
जलमग्न सोंदुल, मध्य प्रदेश
सोंदुल गांव के निवासी और नर्मदा बचाओ आंदोलनके वरिष्ठ सदस्य, छगनभाई केवट नाव खेने वाले केवट समुदाय से आते हैं। छगनभाई का यह साक्षात्कार नर्मदा नदी के किनारे बसे गांवों के विभिन्न समुदायों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की तस्वीर पेश करता है। वह अपने खुद के केवट समुदाय के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि किस तरह उनकी आजीविका नर्मदा से जुड़ी है और वक़्त के साथ-साथ यह किस प्रकार प्रभावित हुई है।
साक्षात्कार की अवधी: 0:30:00
भाषा: हिंदी, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
महेश शर्मा
जलमग्न गांव चिखल्दा, मध्य प्रदेश
नर्मदा बचाओ आंदोलन में बेमिसाल योगदान देने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ता, महेश खुद विस्थापितों में से एक हैं। उनका घर और उनका गांव चिखल्दा, सरदार सरोवर बांध के पानी में डूब गया है। इस छोटी क्लिप में महेश नर्मदा किनारे गुज़रे अपने बचपन के बारे में बताते हैं। नर्मदा के किनारे बड़े होने वाले ज़्यादातर बच्चों के लिए नर्मदा नदी उनके जीवन का अभिन्न अंग रही है, और यह क्लिप उसीकी एक झलक दिखलाती है। इस क्लिप में शामिल की गई तस्वीरें सरदार सरोवर बांध के कारण चिखल्दा के धार्मिक स्थलों की बर्बादी और डूबता हुआ ऐतिहासिक राजघाट पुल दर्शाती हैं।
साक्षात्कार की अवधी: 0:08:58
भाषा: हिंदी, अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ
शांता (बेन) यादव
डूब प्रभावित गांव पीपरी, मध्य प्रदेश
नर्मदा नदी से नर्मदा घाटी की महिलाओं का विशेष रूप से नज़दीकी रिश्ता है। कुछ महिलाओं के लिए नर्मदा खुले हृदय से देने वाली माँ है, और कुछ के लिए दिव्य शक्तियों वाली देवी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ नेता शांताबेन, जिनका खुद का गांव पीपरी, सरदार सरोवर बांध के पानी से बड़े पैमान पर प्रभावित हुआ है, वे कहती हैं, “यह सब माँ (नर्मदा) की देन ही तो है, सब कुछ वही तो दे रही है। उनके ही नाम से तो यह आंदोलन हो रहा है, दिन भर उन्हीं का नाम ही तो हम रटते हैं ‘नर्मदा माता की जय!’, ‘रहने दो, हमें जीने दो, माँ नर्मदा को बहने दो’, ‘घाटी का एक ही नारा, नहीं छोड़ेंगे नर्मदा किनारा’। हर बार नर्मदा माता को रटते हैं, हर बार! तो नर्मदा मैया की ही सब देन है ये।” शांताबेन के इस साक्षात्कार में, नर्मदा के किनारे बसने वाले लोगों के जीवन के इस तरह के अनेक पहलुओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें नर्मदा की परिक्रमा जैसी हिन्दू धर्म से जुड़ी हुई प्राचीन परंपराओं का वर्णन भी शामिल है।
साक्षात्कार की अवधि: 0:25:31
भाषा: निमाड़ी, अंग्रेजी में सबटाइटल्स
स्वर्गीय गंगाराम (बाबा) यादव
डूब-प्रभावित गांव छोटाबड़ादा, मध्य प्रदेश
यह स्वर्गीय गंगारामबाबा के साथ किए गए लंबे साक्षात्कार से ली गई एक छोटी क्लिप है। गंगारामबाबा नर्मदा बचाओ आंदोलन के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से थे। उन्होंने एक लंबे अरसे तक सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबने वाले महाराष्ट्र के पहले गांव होने के कारण आंदोलन का केंद्र बिंदु रहे मणिबेली के कामकाज की ज़िम्मेदारी उठाई। गंगारामबाबा ने अपना खुद का गांव छोटाबड़ादा छोड़ कर कई साल मणिबेली में रह कर संघर्ष किया। वे इस साक्षात्कार में ऐतिहासिक शूल्पनेश्वर मंदिर की दिव्यता का वर्णन करते हैं जो अब सरदार सरोवर बांध में जलमग्न हो चुका है। उतने ही खूबसूरत गांव मणिबेली में स्थित इस भव्य मंदिर की महिमा का सबसे सटीक वर्णन खुद गंगारामबाबा के शब्दों में मिलता है जिन्होंने नर्मदा घाटी के गांवों, ज़मीनों और लोगों के घरों को बांध में डूबने से बचाने के साथ-साथ नर्मदा घाटी की उस समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक घरोहर को बचाने के लिए भी संघर्ष किया जिसे देश द्वारा अपनाएगे विनाशकारी विकास के चलते बेरहमी से नष्ट कर दिया गया। शूल्पनेश्वर मंदिर, जिसे मान्यता रखने वाले लाखों हिंदुओं द्वारा स्वंयभू (खुद प्रकट होने वाले महादेव) भी माना जाता है, और इसी तरह के हमारी विरासत का हिस्सा रहे अनेक पूज्य स्थलों के विनाश की यह कहानी हमें यह भी सीखाती है कि अयोध्या में बनाए गए राम मंदिर के इर्द-गिर्द गढ़ा गया धार्मिक विमर्श कितना खोखला है और बाबरी मसजिद को तोड़ा जाना कितना अनुचित था।
साक्षात्कार की अवधि: 0:03:25
भाषा: हिंदी, अंग्रेज़ी में सबटाइटल के साथ
महेश (भाई) पटेल
डूब क्षेत्र का गांव कुंडिया, मध्य प्रदेश (म.प्र.)
मध्य प्रदेश में सरदार सरोवर परियोजना (एसएसपी) के डूब क्षेत्रों में लोगों को संगठित करने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के विस्तार में महेशभाई का योगदान बेमिसाल है। महेशभाई एनबीए के एक दिग्गज हैं, जिन्हें मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के एक तरह से पितृसत्तात्मक और सामंती समाज में जो जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर लोगों में विभाजन रहता है उसके परे जा कर लोगों ने स्वीकार किया है। महेशभाई का कौशल एनबीए को संगठित करने और मजबूत करने तक ही सीमित नहीं है। वह एक बेहतरीन वक्ता, आयोजक और धन जुटाने वाले हैं, उनके पास सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के सामने बेहतरीन प्रस्तुतियाँ देने की क्षमता है और एसएसपी के सबसे मजबूत समर्थक को भी बांध के विरोधी बना कर साथ लाने की क्षमता है। वह एक बहुत ही प्रसिद्ध और सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखते हैं, और उनका घर एनबीए के एक विस्तारित कार्यालय की तरह था। हर साल, वे और उनका परिवार एनबीए के समर्थन में नर्मदा घाटी में जो आगंतुक बड़ी संख्या में आते थे उनकी मेजबानी करते थे। महेशभाई का विस्तृत साक्षात्कार महत्वपूर्ण है क्योंकि वह एनबीए के निर्माण और कामकाज को समझने में हमारी खूव मदद करता है।
नीचे पोस्ट की गई छोटी क्लिप उसका एक छोटा सा हिस्सा है जिसमें वे सरदार सरोवर बांध द्वारा डूबे महाराष्ट्र के पहले गांव मणिबेली के संघर्ष के बारे में और वहां उनके रहने के बारे में बात करते हैं। यह हमें महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में नर्मदा नदी के तट पर रहने वाले लोगों का क्षेत्र, और उकी भूमि, जंगल और जीवन को समझने में मदद करता है। महेशभाई शूलपनेश्वर मंदिर और स्वयंभू शूलपनेश्वर महादेव लिंग के डूबने की भी बात करते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि वह अपने आप ही प्रकट हुआ था.
साक्षात्कार की अवधि: 0:15:57
भाषा: हिंदी, अंग्रेजी में उपशीर्षक