साधना दधीच

पुणे, महाराष्ट्र

साधना दधीच नर्मदा बचाओ आंदोलन के शुरुआती दिनों से ही इसकी प्रमुख सदस्य रही हैं। महाराष्ट्र राज्य में नर्मदा बचाओ आंदोलन के विस्तार में साधना की जबरदस्त भूमिका रही है और अपने अथक परिश्रम से महाराष्ट्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन की मजबूत नींव डाली।

भारतीय सेना के लिए फ़िज़ियोथेरेपिस्ट के रूप में काम करने और सेवानिवृत्त होने वाली साधना ने शुरू में महिला अधिकारों के लिए काम किया और वे नारी समता मंच, पुणे की संस्थापक सदस्य थी। इसके बाद उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए काम करना शुरू किया, और अपना ज़्यादातर समय आंदोलन के वैचारिक आधार को मजबूत करने में, अपने शहर पुणे में नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थक समूह (समन्वय समिति) की रचना और सशक्तिकरण में, महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों का दौरा कर वहां समन्वय समितियों का गठन करने में और नर्मदा घाटी का, विशेष रूप से शुरूआती वर्षों में, दौरा करके आंदोलन से महिलाओं को जोड़ने और उनकी भागीदारी बढ़ाने में लगाया।

साधना, “यह भी हमारे दिमाग में था कि महिला आंदोलन को व्यापक/समग्र मुद्दों की दिशा में ले जाया जाए”।  अपने इस साक्षात्कार में साधना दधीच महिला आंदोलन को पर्यावरणीय आंदोलन और विकास के मुद्दों से संबंधित नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे आंदोलनों के साथ जोड़ने की ज़रुरत को विस्तार से समझाती हैं। साधना दधीच उन दूरदर्शी विचारकों में से रही हैं जिन्होंने महिला आंदोलन का विकास के मुद्दों से जुड़े आंदोलनों के साथ नज़दीकी रिश्ता स्थापित करने की कोशिश की। 

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, अपने समाजवादी और मज़दूर संगठन का हिस्सा रहे माता-पिता और अपनी शुरूआती परवरिश का जो वर्णन साधना अपने साक्षात्कार में करती हैं, वह आज़ादी के बाद के वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीती को समझने में हमारी मदद करता है। राजनीतिक माहौल में हुई साधना की परवरिश की वजह से ही भारतीय सेना में फ़िज़ियोथेरेपिस्ट के रूप में काम करने के बावजूद, उन्होंने अपने पेशेवर काम और अपने सामजिक-राजनीतिक सरोकारों के बीच संतुलन बनाए रखा, जो आपातकाल के दौरान और उसके बाद भी बहुत ज़रूरी था। साधना समझाती हैं कि किस तरह महिलाओं के अधिकारों और मुद्दों पर उनके काम ने पितृसत्ता और लाभ पर आधारित विकास के मौजूदा मॉडल के बीच की समानताओं को देखने में उनकी मदद की। महिला आंदोलन को विकास के व्यापक मुद्दों से जोड़ने की यह ज़रुरत ही साधना को नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर ले गई और उनके इसे महिला आंदोलन से जोड़ने की कोशिश का आधार बनी। वे अपने साक्षात्कार में महाराष्ट्र में नमर्दा बचाओ आंदोलन समन्वय समितियों के गठन, इन समितियों के स्वरूप, उनके विकास, उनके प्रमुख सदस्यों और सरकार के साथ-साथ गैर-सरकारी इकाइयों और जन संगठनों की ओर से पेश आने वाली चुनौतियों की चर्चा करती हैं। साधना नर्मदा बचाओ आंदोलन की विभिन्न रणनीतियों, निर्णय-प्रक्रिया और उनकी चुनौतियों पर इन समितियों के विचारों के बारे में भी बात करती हैं। साधना महाराष्ट्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन से लेकर जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की स्थापना की प्रक्रिया को समझाते हुए, जो संभव हो पाया और जो नहीं हो पाया उस सब की चर्चा करती हैं। 

साधना का साक्षात्कार उन सभी के लिए सुनना ज़रूरी है जो जन आंदोलनों, उनकी एक दूसरे में मिलती और जुदा होती धाराओं, मुद्दों पर आधारित आंदोलन के बीच की समानताओं और मतभेदों, उनके व्यापक गठबंधन, राजनीतिक दलों और विकास की राजनीती में रूचि रखते हैं।

साक्षात्कार की अवधी: 2:46:00

भाषा: हिंदी और अंग्रेज़ी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में 

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