स्वर्गीय सदाशिव उपाध्याय (पटवारी बाबा)

डूबक्षेत्र ग्राम चिखलदा, मध्य प्रदेश (म.प्र.)

“…उन्होंने घोषणा की थी कि बाँध बनाया जा रहा है और गाँव डूबने वाले हैं…मुझे वर्ष याद नहीं है, लेकिन मुझे याद है कि टवलाई आश्रम के लोग आंदोलन में सक्रिय हो गए थे…वे सभी गाँवों में गए और सूचना दी कि गाँव डूबने  वाले हैं। उन्होंने नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण फैसले के खिलाफ रिट याचिका दायर करने के लिए सभी गाँवों से चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दिया। (सुप्रीम कोर्ट में) सुनवाई की शुरुआत में ही यह निर्णय लिया गया कि चूँकि यह एक अंतर-राज्यीय फैसला था, इसलिए केवल  राज्य सरकारे ही रिट याचिका दायर कर सकती हैं, आम जनता नहीं। इस वजह से, हमारी याचिका सुनवाई के पहले दिन ही खारिज कर दी गई। हमने फीस के लिए जो भी पैसा इकट्ठा किया था, वह भी बर्बाद हो गया और मामला खारिज हो गया… फिर मेधा पाटकर ने इस मुद्दे को उठाया। जब वो और उनके साथी पूछताछ कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि ये लोग (स्थानीय नेता ) भी बांध का सक्रिय विरोध कर रहे हैं और उन्होंने कोर्ट में रिट भी दायर कर दी है। और इस तरह वो पारसमल (कर्णावट ) के घर पहुंचे। पारसमल ने उनसे बात की…बातचीत के बाद उन्होंने तय किया कि वो इस मुद्दे को गांव-गांव तक ले जाएंगे। …वहां से उनका काम शुरू हुआ…उनकी मीटिंग के लिए एक तय दिन होता था, जिस दिन राजघाट के एक मंदिर में मीटिंग होती थी। हर आठवें दिन वो मंदिर में रुकते और पारसमल भी वहां जाते, आस-पास के इलाकों से लोगों को बुलाते और उन्हें साथ लेकर  जहां इन लोगों के भाषण और चर्चाएं चलतीं वहा जाते…जब मैं मीटिंग के लिए राजघाट गया और मैंने उनका (मेधा पाटकर का) भाषण सुना, तो मुझे भी लगा कि वो बहुत विद्वान हैं और जो वो बोलती हैं वो बहुत तार्किक और कानूनी रूप से उचित है। मैं उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ और बांध के सबंध में दिलचस्पी लेने लगा. उसके बाद जब भी मुझे किसी मीटिंग के बारे में पता चलता, मैं उसमें भाग लेने चला जाता। उन बैठकों में शामिल होने से मुझ पर इतना प्रभाव पड़ा कि मैं मेधा पाटकर का अनुयायी बन गया… चूँकि मैं सरपंच था, इसलिए गाँव में मेरा कुछ प्रभाव था, इसलिए धीरे-धीरे मैंने गाँव को आंदोलन की ओर खींचना शुरू कर दिया… मेरा प्रभाव दूर-दूर तक फैला हुआ था… कुछ हद तक लोग अपने स्वार्थ के लिए भी आंदोलन में उतरे थे, यह सोचकर कि अगर बाँध का निर्माण रुक गया, तो वे खुद को बचा सकते हैं… न्यायालय और कार्यालयों से संबंधित सभी आधिकारिक/सरकारी काम मेरी जिम्मेदारी थी… जब भी कोई कार्यकर्ता गिरफ्तार होता, तो मैं ही उसे निपटाता, जिसमें उसकी जमानत करवाना, उसे रिहा करवाना, उसकी अदालती सुनवाई में शामिल होना इस प्रकार की सभी बातें शामिल हुआ करती थीं… यह जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी क्योंकि मैं पटवारी (गाँव का राजस्व अधिकारी) था और मुझे कानून का ज्ञान था… जब भी हम आंदोलन में भाग लेते थे, तो पुलिस हमें गिरफ्तार कर जेल भेज देती थी… और मुझे हर जगह कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए जाना पड़ता था…”,  पटवारी बाबा।

1916 में जन्मे पटवारी बाबा मध्य प्रदेश के डूब क्षेत्र के चिखलदा गाँव से थे। उनका साक्षात्कार इसलिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि वह हमें सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र को समझने में, परियोजना के विरोध के इतिहास को समझने में और एक आंदोलन के बढ़ने और खुद को बनाए रखने में कई पेचीदगियं होती हैं उनको समझने में हमें मदद करता है। उनकी लंबी उम्र और अनुभव के कारण भी उनका साक्षात्कार विशेष महत्व रखता है, और इसलिए भी कि वे एसएसपी के डूब क्षेत्र में आने वाले एक गाँव के मुखिया थे।

पटवारी बाबा अपने चिखलदा के घर (एनबीए के संकलन से लिया गया फोटो)

साक्षात्कार अवधि:
0:28:48

भाषा: हिंदी, अंग्रेजी में उपशीर्षक
साक्षात्कार 

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चूंकि यह साक्षात्कार वर्ष 2002 में टेप रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड किया गया था और भारत में डिजिटल रिकॉर्डिंग उस समय आसानी से उपलब्ध नहीं थी, इसलिए इस रिकॉर्डिंग की ध्वनि उतनी अच्छी नहीं है जितनी कि 2006 के बाद मेरे द्वारा रिकॉर्ड किए गए साक्षात्कारों की है। हालांकि, ध्वनि स्पष्ट है और साक्षात्कार बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साक्षात्कार बीसवी सदी के पहले पहले दशकों के अनुभव से शुरू होता है और आगे चल कर इसमें सरदार सरोवर बांध, नर्मदा नदी और बांध के खिलाफ हुए संघर्ष के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शामिल है।