भीमगढ़ बाँध संघर्ष समिति, जिला सिवनी (म.प्र.)
पंद्रह साल पहले मैं खेत में काम कर रही थी। तभी मैंने देखा कि एक आदमी नापतौल कर रहा है। मैंने पूछा – “भैया, क्या कर रहे हो?” वह बोला – “कुछ नहीं, यहाँ पानी भर जाएगा, यह जगह डूब जाएगी। पानी इस पेड़ तक आ जाएगा।” मैंने पूछा – “हम कहाँ जाएंगे?” वह बोला – “कहीं भी जाओ, सरकार पैसे देगी।”
बाँध बन गया। हाँ, हमें मुआवज़ा मिला। कितना? पटवारी कहता – “इस जमीन की कीमत ही क्या है?” जब चेक दिए गए तो किसी को 1500 रुपये, किसी को 500 रुपये मिले। हम पैसों के लिए मजबूर थे। हमने पूछा – “हम कहाँ जाएँ?”
सरकार ने कहा – “जगह नहीं है।” हमने कहा – “हम कैसे जाएँ?” उन्होंने कहा – “ट्रक देंगे।”
पानी आया तो हम जंगल भागे। अपना सब कुछ – लकड़ी, घर – सब छोड़कर भाग गए। सिवनी आ गए। सरकार ने हमें प्रमाण पत्र दिया कि जबलपुर या मंडला जिले में कहीं भी घर बना सकते हो। हम गए, ज़मीन देखी। बस्ती के पटेल ने पूछा – “यहाँ क्या बना रहे हो?” हमने सरकार का दिया हुआ पत्र दिखाया। वह लोग कुछ समझे नहीं, रात में घर तोड़ने आ गए। तहसीलदार भी आया – “यह सरकारी जमीन है, यहाँ घर क्यों बनाए?” हमने कहा – “हमने बना लिया है, तोड़ सकते हो तो तोड़ दो।”
उन्होंने नहीं तोड़ा, कोर्ट चले गए। सुनवाई एक साल चली, फिर हमें हर साल 25-50 रुपये जुर्माना देना पड़ा। यह 3 साल तक चलता रहा। फिर एक मैडम आई। उसने कहा – “मैं यहाँ घर बनाऊँगी, तुम्हारे घर तोड़ दूँगी।” हमने रोका। वह नाराज़ हुई। हमने कहा – “हम तुम्हें एक इंच रास्ता भी नहीं देंगे, हमारी मवेशी कहाँ जाएँगे?” उसने तहसील में केस कर दिया। दो साल तक मुकदमा चला। अब 15 साल हो गए। न पट्टा है, न जमीन। 22 परिवार मिलकर सिवनी में भगवान शंकर का छोटा-सा मंदिर बना पाए – आखिर हमारे देवता भी तो हमारे साथ ही चलेंगे। सरपंच ने पूछा – “क्या यह तुम्हारी संपत्ति है?” हमने कहा – “हमारे भगवान सरकार है जिसने हमें उजाड़ा है – और यह मंदिर हमारा है।”
हम एस.डी.एम. और बाँध अधिकारी से मिले। उसने कहा – “हम तुम्हें देख लेंगे।”
मंदिर का संघर्ष जारी है और मैं यहाँ इस बैठक में आई हूँ। पता नहीं हमारे लोग अब भी लड़ रहे हैं या नहीं। यह हमारी बदकिस्मती की कहानी है। सरकार ने हमें अंधे की लाठी पकड़ाकर नरक में धकेल दिया। हमने बहुत मुश्किल से अपने बच्चों को पढ़ाया।
एक 9वीं में है, एक 12वीं में। कम से कम सरकार एक बच्चे को नौकरी दे देती तो वह मज़दूरी के लिए इधर-उधर भटकता नहीं। क्या 6वीं का बच्चा मज़दूरी कर सकता है?
हमारे पास कपड़े तक नहीं हैं। क्या सरकार ने यह सब इसलिए किया – हमें उजाड़ने के लिए? 18 परिवार इसी तरह दुख झेल रहे हैं। किसी के 8 सदस्य हैं, किसी के 12।
हमने जो टूटी-फूटी झोपड़ियाँ बनाई हैं, उनमें रह रहे हैं। 15 साल से हम इन चेकों को भुना नहीं पा रहे। इस इलाके के 50 चेक फर्जी हैं। पता नहीं कितने हज़ार के हैं ये चेक।
हम इन्हें 15 साल से लेकर घूम रहे हैं। बताओ, इस सबका क्या किया जाए?
वे तो तब राहत की साँस लेंगे जब हम मर जाएँगे। कहते हैं – “हमने तुम्हें मुआवज़ा दे दिया।” लेकिन हमें जो गालियाँ, लात-घूँसे मिल रहे हैं क्योंकि हमने दूसरों की ज़मीन पर घर बनाए – उसका क्या? हमें पट्टा कौन देगा? ठेकेदारों ने बाँध से मुनाफ़ा कमाया।
सरकार मछली बेचकर लाभ कमा रही है। उन्होंने आधी आबादी को उजाड़ दिया।
अब उन्हें हमारी मौत की परवाह भी नहीं।