निती दीवान

मध्यप्रदेश महिला मंच, होशंगाबाद

मध्यप्रदेश का होशंगाबाद जिला प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है। लेकिन यहाँ विकास परियोजनाओं ने भारी पैमाने पर विस्थापन किया है।

सबसे पहले, तवा बाँध के कारण केवल केसल़ा ब्लॉक में ही 25–30 गाँव उजाड़ दिए गए। लोगों को अलग-अलग जगहों पर बिखरा कर बसाया गया। समुदाय टूट गया। हर परिवार को कुछ जमीन और इंदिरा आवास योजना के तहत एक टिन का घर दिया गया, लेकिन उनकी हालत धीरे-धीरे और खराब होती चली गई।

इसके बाद, इटारसी के पास केसल़ा में प्रूफ रेंज (गोलाबारूद परीक्षण क्षेत्र) बनाई गई। इससे और गाँव उजड़ गए। लोगों को फिर से उसी तरह बिखरा कर बसाया गया। इस इलाके में 20–25 किमी क्षेत्र में बमों की जाँच होती है। यहीं से लोग इटारसी आते-जाते हैं। बम परीक्षण के कोई तय समय नहीं होते। अक्सर लोग गुजरते समय मारे जाते हैं।

जमीन और जंगल खो जाने के बाद लोग अपनी जीविका के लिए बमों के फटने से बचे पीतल के खोल (brass shells) बटोरने लगे। लेकिन कई बार जब वे खोल बटोर रहे होते, तभी दूसरा बम फट जाता और लोग मारे जाते। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि चिन्दपानी गाँव को “विधवाओं का गाँव” कहा जाने लगा, क्योंकि यहाँ के लगभग सभी पुरुष बमों में मारे जा चुके हैं।

तवा बाँध के पास बसे कुछ गाँव बरसात में जलमग्न हो जाते हैं। जमीन डूब जाती है। फसल केवल पानी उतरने के बाद ही बोई जा सकती है। अगर उस समय ज्यादा बारिश हो जाए, तो फसल फिर नष्ट हो जाती है। बेरोजगारी यहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। धीरे-धीरे आदिवासी मज़दूरी के लिए पलायन करने लगे हैं।

महिलाओं की स्थिति और भी कठिन है। महिला मज़दूरों ने बताया कि ठेकेदारों ने नया नियम बनाया है—केवल 18–22 साल की औरतों को ही मज़दूरी के लिए ले जाया जाएगा। यानी सिर्फ वे महिलाएँ जिन्हें शारीरिक रूप से मज़बूत समझा जाता है।

तीसरा बड़ा कारण है टाइगर प्रोजेक्ट। केसल़ा ब्लॉक को यहाँ भी बुरी तरह उजाड़ा गया। इस परियोजना से 17 गाँव उखड़ेंगे। बोनी अभयारण्य का क्षेत्र भी इसी इलाके में आता है। इस पर भी एक आंदोलन शुरू हुआ है।

यहीं के मधिको गाँव (तवा नदी किनारे) की घटना है—15–16 साल की बच्ची का गुंडों ने अपहरण कर पूरी रात बलात्कार किया। अगले दिन उसे छोड़ दिया। अपराधियों में से तीन पकड़े गए लेकिन बाकी अब तक फरार हैं। बच्ची और उसके परिवार ने हिम्मत दिखाकर एफआईआर दर्ज कराई। महिलाओं के संगठनों का एक दल वहाँ गया और रिपोर्ट लिखी। कलेक्टर और थानेदार से भी मिले, लेकिन उन्होंने मेडिकल रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया। लड़की को एफआईआर की कॉपी तक नहीं दी गई।

जब हम एसपी से मिले तो उन्होंने कहा—“लड़की को तो बस खरोंच आई होगी। इतनी हाय-तौबा क्यों मचा रहे हो? क्या यही एक काम बचा है महिलाओं के संगठनों के लिए कि जहाँ रेप हुआ है, वहीं जाकर शोर मचाओ?” उन्होंने कहा—“रेप तो बहुत आम है, अंतरराष्ट्रीय आँकड़े देखो। और आदिवासियों को तो इसकी परवाह भी नहीं होती।”

यह रवैया बताता है कि प्रशासन आदिवासियों और औरतों के प्रति कितना घोर अपमानजनक और अमानवीय दृष्टिकोण रखता है।

साक्षरता के नाम पर भी अपमानजनक घटनाएँ होती हैं। हाल ही में कलेक्टर ने केसल़ा का दौरा किया और महिला सरपंच बाटीबाई को कहा कि वे औरतों से गोंडी नृत्य कराएँ। बाटीबाई एक साधारण और पहली बार चुनी गईं महिला थीं। अगर महिला संगठन वहाँ न होते, तो शायद वे इसका विरोध भी न कर पातीं। प्रशासन का रवैया पूरी तरह पितृसत्तात्मक और घृणास्पद है।

केसल़ा ब्लॉक के गाँवों में बलात्कार की घटनाएँ बेहद गंभीर हैं। मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि इस साल मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा रेप यहीं हुए हैं। लेकिन एसपी कहते हैं कि “यह तो वैसे भी दुनिया भर में हो रहा है”!

बेतूल जिले की एक 65 वर्षीय महिला सरपंच के साथ तो और भी भयानक हुआ। चुनाव जीतने के 20 दिन बाद ही गाँव के सवर्णों ने उन्हें परेशान किया, बलात्कार किया, निर्वस्त्र कर गाँव में घुमाया। यह कोई अकेली घटना नहीं थी। बस इसलिए सुर्खियों में आई क्योंकि पीड़िता सरपंच थीं।