खेडूत मज़दूर चेतना संगठन आलीराजपुर, झाबुआ (म.प्र.)
मेरा नाम उंडाली है। मैं झाबुआ ज़िले के केलांडी फलिया में रहती हूँ। हमारी हालत बहुत खराब है, इसलिए हम अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। हम अपने बच्चों को ठीक से खाना नहीं खिला पाते, मवेशियों को चारा नहीं दे पाते। सरकार मज़दूर लाकर हमारी पहाड़ियाँ खोद देती है। ऐसे हालात में हम कैसे जीएँ?
इन समस्याओं का एक ही हल है – संगठन बनाना, साथ मिलकर लड़ना। इसी कारण हमने अपने गाँव छोड़े, अपनी लाज शर्म छोड़ी और औरतों से बात की। तभी हम आज यहाँ पहुँचे हैं, घर से बहुत दूर। हमारी सोच है – जब आपको समस्या हो तो हम आएँगे, और जब हमें तकलीफ़ हो तो आप आएँ। साथ मिलकर ही हम एक-दूसरे की मुश्किलें हल करेंगे।
हम रोज़गार के लिए नवसारी तक गए। हमें ‘मामा लोग’ कहा जाता है, हमें गंदा समझा जाता है। लेकिन हम गंदे नहीं हैं, हम आदिवासी हैं। हाँ, हम बचपन से ही सब काम अपने हाथ से करते आए हैं। खेतों में काम करते हैं, अनाज उगाते हैं। अपने पेट के लिए हम मिट्टी में काम करते हैं, बरसात में कपड़े और शरीर कीचड़ वाले हो जाते हैं – क्योंकि हम हल चलाते हैं, बीज बोते हैं।
पर हमें गंदा कहने वाले, आप सोचो – आप अच्छे खाने-पीने पाते हो, स्कूल जाते हो, आराम से सोते हो। तो तुम साफ ही रहोगे। बचपनमें कई बार हमें सिर्फ़ भाजी में गुज़ारा करना पड़ता है, रोटी तक नहीं होती थी। कई बार सब्ज़ी तक नसीब नहीं होती। आधा किलो अनाज कितने लोगों को भर पाएगा? हम साथ मिलकर उगाते हैं। यही हमारा जीना और यही हमारी रोज़ी है। लेकिन हमारी कोई मिल्कियत नहीं है। दलाल हमें लूटते हैं, सरकारी लोग हमारे जंगल से लकड़ी तक छीन लेते हैं। ऐसे में हम कैसे कुछ अपना बना सकते हैं?