प्रमिला

फॉर, उड़ीसा

हमारे इलाके में आदिवासियों के जंगल बड़े-बड़े उद्योगों के लिए काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण भी नष्ट हो रहा है। लेकिन आदिवासियों को कुछ नहीं मिलता। बाल्को फैक्ट्री ने पूरे जंगल उजाड़ दिए और उनके साथ ही लोगों के लिए ज़रूरी दवाइयाँ भी खत्म हो गईं। नदियाँ सूख जाएँगी, पहाड़ उजड़ जाएँगे और लोग भी खत्म हो जाएँगे। हमें ऐसी फैक्ट्री का क्या फ़ायदा? हमें यह नहीं चाहिए।

बल्लियापाल क्षेत्र, जहाँ परीक्षण रेंज बनने की योजना थी, बहुत उपजाऊ और उर्वर है। अगर यह बनी, तो लोग विस्थापित होंगे और ज़मीन बर्बाद हो जाएगी। सभी बड़े उद्योग और बड़े बाँध ग़रीबों के लिए नहीं होते – ये ग़रीबों को मिटाने के लिए होते हैं। इसलिए हमें सब मिलकर इनके ख़िलाफ़ खड़ा होना होगा।

हमारा संगठन उड़ीसा के 7 ज़िलों और 2000 गाँवों में फैला है। असली चुनौती है – जनसंगठन कैसे बनाए जाएँ, आदिवासियों की मदद कैसे की जाए और गाँवों में उनके हक़ों की लड़ाई कैसे लड़ी जाए। यहाँ ज़्यादातर आदिवासी बांस पर निर्भर हैं। वे टोकरी बनाकर बाज़ार में बेचते हैं। लेकिन कागज़ की मिलें बिना पुनर्जनन की परवाह किए बांस काटती रहती हैं। हमने वहाँ औरतों को संगठित किया और उन्हें रोका। चिपको आंदोलन की तरह औरतें बांस से चिपक गईं।

हमने औरतों के साथ बैठकें शुरू कीं ताकि आदिवासी महिलाएँ भी सरकार पर असर डाल सकें। उड़ीसा में कई संगठन आदिवासियों के बीच काम करते हैं। जब भी मौका मिलता है, हम सब मिलकर सम्मेलनों का आयोजन करते हैं।

हमने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन दिया, जिसमें 9 माँगें रखी थीं। प्रमुख माँगें थीं:

30% ढलान वाली ज़मीन महिलाओं को दी जाए, क्योंकि अधिकांश महिलाओं के नाम पर पट्टे नहीं हैं और सरकारी रिकॉर्ड भी नहीं है।

ज़मीन का बँटवारा पुरुष और महिला दोनों के नाम पर हो।

शराब की दुकानों को लाइसेंस देना बंद किया जाए।

आदिवासियों को लघु वनोपज इकट्ठा करने के लाइसेंस दिए जाएँ।

महिलाओं को जवाहर रोज़गार योजना जैसी योजनाओं में प्राथमिकता मिले और इसके लिए समिति बने।

और सबसे महत्वपूर्ण माँग – बाँध या अन्य बड़े प्रोजेक्ट बनाने से पहले लोगों की सहमति लेना अनिवार्य हो।

ज्ञापन देने के एक महीने बाद मुख्यमंत्री ने हमें बातचीत के लिए बुलाया। हमारी ज़्यादातर माँगें मान ली गईं और आदेश भी दिए गए। लेकिन दो माँगें – शराब की दुकानों पर रोक और लोगों की सहमति –नहीं मानी गईं। बाद में 1994 में शराब की दुकानों को लाइसेंस देना बंद कर दिया गया। इससे बड़ा असर पड़ा। अब नीति यह है कि ज़मीन पुरुष और महिला दोनों के नाम पर दी जाती है।

हम चिलिका बचाओ, बल्लियापाल और बाल्को संघर्षों से जुड़े रहे हैं। इन जगहों पर लोगों ने इतनी मज़बूती से लड़ाई लड़ी कि काम रुक गया। औरतें ट्रकों के सामने ज़मीन पर लेट गईं ताकि उन्हें आगे न बढ़ने दें।

हमने दंडकारण्य क्षेत्र में 16 बहुकाई प्रोजेक्टों के ख़िलाफ़ एक महीने लंबी पदयात्रा भी की ।