(सरदार सरोवर प्रभावित) वडगाम, गुजरात
हमें मालू (पुनर्वास स्थल) पर ज़मीन दी गई थी। वहाँ बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं, इसलिए हम वापस वडगाम लौट आए। वहाँ दो साल तक रहे। लेकिन हमें वहाँ भी रहने नहीं दिया गया। फिर हमें सिमलिया नाम के दूसरे स्थल पर ले जाया गया। वहाँ चारा भी हम अपने मन से नहीं इकट्ठा कर सकते, सबको समूह में जाना पड़ता है। सरकार ने कहा कि हमें 5 एकड़ ज़मीन दी गई है। लेकिन वहाँ न ईंधन है, न मज़दूरी, न सब्ज़ियाँ — गुज़ारा करना मुश्किल है। सरकार कहती है कि तुम्हें 5 एकड़ ज़मीन दी गई है — यह झूठ है। हम पूरी उम्र खेतों में काम करते आए हैं, हमें तो पता है कि कितनी ज़मीन मिली है। हमें पूरी 5 एकड़ नहीं मिली, यह तो पक्का है।
हमें ज़बरदस्ती हमारे गाँवों से हटाया गया। सरकार ने जो वादा किया था — सड़कें, बिजली, पीने का पानी — वह कुछ भी नहीं मिला। हमें आज तक पट्टा नहीं मिला, हमारे बेटों को भी ज़मीन नहीं दी गई। 16 लोगों का परिवार 5 एकड़ ज़मीन, या उससे भी कम पर कैसे गुज़ारा करे? जब सरकार गुजरात के सिर्फ 19 गाँवों के विस्थापितों को ठीक से ज़मीन नहीं दे सकती, तो फिर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों को क्या देगी? सरकार तो पूरी तरह झूठ बोल रही है…