सरदार सरोवर बांध से जलमग्न होने वाले धार्मिक स्थल

सरदार सरोवर बांध से नष्ट हुए मंदिर, मस्जिद, देरासर और धार्मिक स्थल

नर्मदा की महिमा की प्रशंसा में एक लोकप्रिय हिंदू वाक्यांश है:

“त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे”
“हे देवी नर्मदा, मैं आपके चरण कमलों को नमन करती हूँ, कृपया मुझे शरण प्रदान करें।”

नर्मदा नदी को करोड़ों हिंदू देवी के रूप में पूजते हैं। जहाँ गंगा में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं यह माना जाता है कि केवल नर्मदा के दर्शन मात्र से ही सारे पाप मिट जाते हैं। “नमामि देवी नर्मदे”—अर्थात् हे देवी नर्मदा, मैं आपको नमन करती हूँ और नर्मदे हर, यह नदी के प्रति श्रद्धा प्रकट करने वाले सामान्य मंत्र है। इस देवी की स्तुति में नर्मदा अष्टकम (जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है) और नर्मदा पुराण सहित अनेक भजन, प्रार्थनाएँ और ग्रंथ समर्पित हैं।

Photo Caption – मध्‍यप्रदेश के निसरपुर गाँव में सरदार सरोवर बाँध से डूब चुके जैन देरासर के अंदर शेष बची चरण पादुका। जलाशय स्‍तर कम होने पर यह मंदिर डूब से बाहर निकल आता है। लेकिन अब इसमें न तो कोई मूर्ति है और न ही यहाँ पूजा होती है। मुर्तियों को पास के कस्‍बे बड़वानी स्थित जैन मंदिर में रखा गया है। फोटो साभार – रोहित जैन, ओरल हिस्ट्री नर्मदा

आध्यात्मिक आस्था और नदी का पवित्र प्रवाह

नर्मदा पुराण के अनुसार, नर्मदा भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न हुई थीं। उनके पंद्रह नाम – परा, दक्षिण गंगा, सुरसा/सर्सा, मंदाकिनी, विमला, कर्भा, त्रिकुटी, शोन, महती, कृपा, महार्णव, रेवा, विपापा, विपाशा/बिपाशा, वायुधिनी – का उच्चारण अत्यंत शुभ माना जाता है। यहाँ तक कि केवल इन नामों को सुनना भी पुण्यदायक कहा गया है। एक व्यापक मान्यता यह है कि नर्मदा एक कुंवारी नदी है और उसका प्रवाह रोका नहीं जा सकता। यह विश्वास नर्मदा अष्टकम में भी व्यक्त होता है, जिसमें कहा गया है कि नर्मदा की बहती धारा ध्वनि गूंज से भरपूर है।

मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के गाँवों में भजन मंडलियाँ  आम होती हैं। उनका एक लोकप्रिय भजन है:

मा रेवा थारो पानी निर्मल, कल कल बहतो जाए रे…”
(“माँ रेवा, थारो पानी निर्मल – कलकल बहतो जावे रे …”)

यह गीत नदी के मधुर, निरंतर बहते स्वरूप की स्तुति करता है—जो नर्मदा अष्टकम और नर्मदा पुराण दोनों में प्रतिध्वनित होता है।

नर्मदा पुराण (जो इंटरनेट आर्काइव पर हिंदी में उपलब्ध है) न केवल नदी की पौराणिक उत्पत्ति का वर्णन करता है, बल्कि उसके धार्मिक स्थलों, वनों, वनस्पतियों और पारिस्थितिकी का भी विस्तृत वर्णन करता है। ग्रंथ में बताया गया है कि भगवान शिव ने नर्मदा को वरदान दिया, जब नदी ने प्रार्थना की:

“हे प्रभु! आपको मेरे तट पर निवास करना होगा।”

शिव ने उत्तर दिया:

“तथास्तु। मैं ब्रह्मा, इंद्र, चंद्र, वरुण और अन्य देवताओं के साथ तुम्हारे उत्तरी तट पर निवास करूंगा।”

इस कारण, नर्मदा के तटों पर हर पत्थर को शिवलिंग माना जाता है। नर्मदा के दोनों ही किनारों पर अनेक शिव मंदिर हैं—इनमें से कुछ तो स्वयं-भू अर्थात् खुद ही प्रकट हुए हैं। इनके अलावा दोनों तटों पर अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं।।

सरदार सरोवर परियोजना द्वारा धार्मिक स्थलों का विनाश

सरदार सरोवर परियोजना (एसएसपी) और नर्मदा पर बनाए गए अन्य बड़े बांधों के कारण सैकड़ों मंदिर—जो ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थे – जलमग्न हो गए। इनमें मस्जिद, जैन देरासर-और आदिवासियों के धार्मिक और पवित्र स्थल शामिल थे, जो कभी नदी के दोनों तटों पर स्थित थे।

हालाँकि सरकार ने वादा किया था कि इन धार्मिक स्थलों को “ईंट दर ईंट, पत्थर दर पत्थर, मूर्ति दर मूर्ति” स्थानांतरित किया जाएगा, परंतु सच्‍चाई यह है कि इनमें से अधिकतर स्थल बाँध के जलाशय में डूब गए। कुछ मंदिरों को केवल औपचारिक रुप से पुनःस्थापित किया गया, लेकिन अधिकांश तो हमेशा के लिए जलसमाधि ले चुके हैं। जब बाँध का पानी कम हो जाता है तब कुछ धार्मिक स्‍थल कुछ समय के लिए आ जाते हैं। और फिर बांध में पानी का स्तर बढ़ने पर डूब जाते हैं।

नर्मदा : एक अमर नदी

नर्मदा पुराण में कहा गया है:

“नदियों में गंगा और सरस्वती महान हैं। कावेरी, देविका, सिंधु, सलकुति, सरयू, शत्रुद्र, माहि, चंबल, गोदावरी, यमुना, तापती, सतलज जैसी नदियाँ पवित्र हैं। कुछ नदियाँ पापों का नाश करती हैं। लेकिन जो नदी कभी नष्ट नहीं हो सकती— विनाश के समय भी —वह है नमृता—नर्मदा। अन्य सभी नदियाँ मुरझा गईं, लेकिन नर्मदा नहीं।”

यह विश्वास कि नर्मदा अमर है और उसका प्रवाह कभी नहीं रोका जाना चाहिए- नर्मदा घाटी के लोगों की मान्‍यता रही है और उनके लिए यह यह आस्‍था का सवाल है।। उनके लिए बाँध का विरोध केवल ज़मीन और जीविका की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह नर्मदा नदी के लिए आध्यात्मिक संघर्ष भी है। वे मानते हैं कि अमर नर्मदा या उसके प्रवाह को बाधित नहीं किया जाना चाहिए और उसे स्वतंत्र रूप से बहने देना चाहिए।

पुराण में सुंदरता से वर्णन है कि शिव ने नर्मदा को समुद्र को समर्पित किया था और वह अपने मार्ग में सबको समृद्ध करते हुए हर्षपूर्वक उससे मिलती है। आदिवासी समुदायों में इस मिलन की कथा मौखिक परंपराओं द्वारा संरक्षित है। आदिवासी समुदायों में इस मिलन की कथा मौखिक परंपराओं द्वारा संरक्षित है। ऐसा ही एक किस्‍सा सरदार सरोवर बाँध में डूब चुके जलसिंधी गाँव के एक आदिवासी नेता बावा महरिया ने सुनाया:

“नर्मदा अपनी छह बहनों के साथ, कुल सात नदियाँ, दूदू दरिया से मिलने निकली। बाकी नदियाँ मैदानों से होकर बहती आईं, लेकिन सती नर्मदा पहाड़ियों से होकर आई क्योंकि वह लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती थी। वह जंगलों और पहाड़ों से होती हुई जलसिंधी पहुँची, जहाँ वह रात में रुकी… दूदू दरिया ने पूछा कि उसकी बाकी रानियाँ (नर्मदा की छह बहनें) तो पहुँच गईं, पर नर्मदा क्यों नहीं आई। उन्होंने गिरमतू जुरु को उसे खोजने भेजा… जब नर्मदा से पूछा गया कि वह क्यों देर से पहुँची, तो उसने कहा: मैं सबसे बड़ी रानी हूँ और मैंने जंगलों और पहाड़ों से होते हुए यात्रा की ताकि किसी को चोट न पहुँचे… इसलिए हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि नर्मदा ने अपने जन्म से कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया।”

नर्मदा परिक्रमा : एक आध्यात्मिक परंपरा

दुनिया में संभवतः यह एकमात्र परंपरा है जिसमें हजारों हिंदू नर्मदा परिक्रमा  करते हैं – देवी नर्मदा की परिक्रमा। वे मध्य प्रदेश के अमरकंटक में स्थित नदी के उद्गम स्थल से गुजरात के खंभात की खाड़ी तक जहा नर्मदा दरिया को मिलती हैं पैदल जाते हैं और फिर लौटते हैं। यह यात्रा पहले लगभग 2500 किलोमीटर लंबी होती थी जो अब बढकर करीब 3400 किलोमीटर हो गई है। परिक्रमा का रास्‍ता लंबा होने की वजह सरदार सरोवर, औंकारेश्‍वर, इंदिरा सागर और बरगी बाँधों के जलाशय है। जब बाँध नहीं बने थे तब नर्मदा के दोनों किनारों पर पगडण्डियाँ थी। परिक्रमावासी नर्मदा का दर्शन लाभ लेते हुए इसके किनारे ही चलते थे। इस प्राचीन परंपरा का पाल अब संभव नहीं रहा गया है। जलाशय भर जाने से किनारे के रास्‍ते डूब गए हैं और अब जलाशय के किनारों से होकर पैदल चलना संभव नहीं है।

परिक्रमावासी बहुत ही कम सामान साथ रखते हैं, और रास्ते के गाँवों के लोग उन्हें भोजन और विश्राम की व्यवस्था प्रदान करना पुण्य का कार्य मानते हैं। यह प्राचीन परंपरा अब बाधित हो गई है क्योंकि नदी तट, बांधों से जलमग्न हो चुके हैं। अब परिक्रमावासियों को कई जगह  नदी से दूर, व्यस्त सड़कों से होकर चलना पड़ता है।

एक गहरा विरोधाभास

यह बहुत बड़ी विडंबना है कि एक समाज जो नदियों को अत्यंत पवित्र मानता है, वही बाँध बनाकर उन्हें नष्ट भी करता है। शहरी आबादी – जो सामान्‍यत: नदी से दूर रहती है – नर्मदा को पवित्र मानते हुए भी आर्थिक लाभ के लिए उसके प्रवाह को बाधित का समर्थन करती है।

गुजरात में राजनीतिक विमर्श ने नर्मदा को नया रूप दे दिया है। जहाँ शास्त्रों में उन्हें जीवन दायिनी कहा गया है, वहीं अब राजनेता एसएसपी को जीवन डोरी—गुजरात की जीवन रेखा—कहते हैं। लेकिन नर्मदा घाटी के लोग बड़े बाँधो को नदी के लिए फाँसी का फंदा  कहते हैं। धार्मिक आस्थाओं के बावजूद, एसएसपी का विरोध करने वालों को गुजरात विरोधी या विकास विरोधी कहा गया। दुर्भाग्यवश, इस माहकाय बांध के विकल्प कभी पूरी तरह से नहीं तलाशे गए।

हालाँकि धार्मिक मान्यता है कि नर्मदा को बाँधा नहीं जा सकता, पर अब वह एक ठहरी हुई, प्रदूषित जलाशय बन चुकी है। बाँध के नीचे का हिस्सा साल के अधिकांश समय सूखा रहता है। एक समय जो नदी गूंजते हुए स्वर में बहती थी, आज वह बाँधो के कारण मौन हो चुकी है।

संघर्ष जारी है…

नर्मदा घाटी के लोग लंबे समय से – और आज भी – सिर्फ ज़मीन और घरों के लिए नहीं, बल्कि नर्मदा नदी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे इस अधिकार के लिए लड़ रहे हैं कि नर्मदा जीवित रहे, आजादी से बहे और गा सके।

नीचे दी गई तस्वीरें सरदार सरोवर बाँध का जलाशय स्‍तर हर साल गर्मियों में कम होने के बाद डूब से बाहर निकले धार्मिक स्थलों के अवशेषों की हैं। गर्मियों में सिर्फ़ कुछ महीनों के लिए ही ये धार्मिक स्थल बाँध की डूब से बाहर निकलते हैं। इनमें से कुछ धार्मिक स्‍थलों की साफ-सफाई और रंग-रोगन किया जाता है ताकि लोग बांध के पानी में फिर से समा जाने से पहले इनमें पूजा-अर्चना कर सकें। ये तस्वीरें सरदार सरोवर बाँध द्वारा नष्ट किए गए अनेक धार्मिक स्थलों में से मात्र कुछ ही स्‍थलों की हैं। बरगी बाँध, नर्मदा सागर बाँध आदि के जल में भी ऐसे सैकड़ों स्थल – सदियों की आस्था, स्मृति और आध्यात्मिक परंपरा – सब समाप्त हो चुके हैं।

(अनुवाद chatgpt की मदद से किया गया हैं। )

(फोटो क्रेडिट: आशीष कोठारी, जॉर्ग बोथलिंग, नंदिनी ओज़ा, प्रज्ञा पटेल, रेहमत,, रोहित जैन, श्रीपाद धर्माधिकारी)

प्रदर्शित तस्वीरें

जलमग्न स्थल चिखल्दा, मध्य प्रदेश ▾

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