डूब-प्रभावित गांव छोटाबड़ादा, मध्य प्रदेश.
यह नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ नेता, स्वर्गीय गंगारामबाबा का एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार है। गंगारामबाबा निमाड़ बचाओ आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य थे और 1970 के आखिरी वर्षों में इस आंदोलन में जेल भी गए थे। यह साक्षात्कार हमें बताता है कि (निमाड़ बचाओ आंदोलन के संदर्भ में) किसी आंदोलन के नेताओं द्वारा सत्ता से समझौता करने पर इसका आंदोलन से जुड़े लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
साक्षात्कार में वे आगे नर्मदा बचाओ आंदोलन के उभार और सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबने वाले महाराष्ट्र के पहले गांव, मणिबेली में आंदोलन के शुरुआती संघर्षों के बारे में बात करते हैं। बांध के सबसे नज़दीक का गांव होने के कारण, एक समय पर मणिबेली नर्मदा बचाओ आंदोलन का केंद्र बिंदु हुआ करता था। मणिबेली का संघर्ष इतना महत्वपूर्ण और शक्तिशाली था कि इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और जब दुनिया के कई संगठनों ने विशाल बांधों के लिए विश्व बैंक द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता पर रोक लगाए जाने का आह्वान किया, तो इसे मणिबेली घोषणा कहा गया।
एक समय पर नर्मदा बचाओ आंदोलन का गढ़ रहे मणिबेली के शुरुआती संघर्षों के, आंदोलन द्वारा अपनाई गई रणनीतियों के, सरकार द्वारा किए गए दमन के, गांव, ज़मीन और जंगल बचाने की लड़ाई के और डूब के लोगों पर होने वाले प्रभावों के इस ब्योरे को सुनना और ऐतिहासिक शूल्पणेश्वर मंदिर – जिसे मान्यता रखने वाले हिन्दू स्वयंभू मानते हैं – के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है। यह साक्षात्कार आंदोलन द्वारा अपनाई गई एक प्रमुख रणनीति – जल समर्पण (डूब कर जीवन का त्याग) -को समझने में भी हमारी मदद करता है। वर्ष 1993 में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भारत सरकार के सामने 6 अगस्त तक सरदार सरोवर परियोजना की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन करने की मांग रखते हुए, यह घोषणा की थी कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो आंदोलन के कार्यकर्ताओं के एक छोटे समूह – समर्पित दल – द्वारा जल समर्पण किया जाएगा। गंगारामबाबा यहां 6 अगस्त 1993 के घटनाक्रम का वर्णन करते हैं।
गंगारामबाबा के इस साक्षात्कार के ज़रिए आंदोलन के इस और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को समझा जा सकता है। यह साक्षात्कार इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसे वर्ष 2001 में एक टेप रिकॉर्डर पर, बल्कि एक वॉकमेन पर रिकॉर्ड किया गया था। उस समय बड़वानी में, जहाँ मैं उस समय रहती थी, न अच्छी कैसेट मिलती थी न अच्छी बैटरी। उस समय बिजली जाना मध्य प्रदेश में बहुत आम था, खासतौर पर गांवों में और अच्छी बैटरी न होने पर रिकॉर्डिंग करना काफी मुश्किल काम हुआ करता था। टेप रिकॉर्डर और कैसेट प्लेयर का ज़माना ख़त्म होने की कगार पर था और मिनी-डिस्क रिकॉर्डर बाजार में आना बस शुरू ही हुए थे। यही नहीं, यह मेरे द्वारा किए गए शुरूआती साक्षात्कारों में से एक है जब मौखिक इतिहास दर्ज करने की कला मैं सीख ही रही थी। भारत में मौखिक इतिहास पद्धति सीखाने वाला कोई कोर्स या कॉलेज भी उस समय नहीं था। इंटरनेट सुविधा भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी और मौखिक इतिहास से जुड़ी सामग्री ऑनलाइन भी मुझे बहुत ज़्यादा उपलब्ध नहीं थी। लेकिन इन तमाम चुनौतियों के बावजूद रिकॉर्ड किए गए नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ सदस्यों के यह साक्षात्कार बहुत शक्तिशाली हैं जिन्हें सुना जाना बहुत ज़रूरी है और मुझे बहुत ख़ुशी है कि इन प्रभावी आवाज़ों को मैं अपने रिकॉर्डर में दर्ज कर पाई।
साक्षात्कार की अवधि:
1:14:00
भाषा:
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