डूब प्रभावित गांव: छोटाबड़ादा, मध्य प्रदेश
रुकमणी काकी, “पुरुष सभा में जाते थे, सुनते थे, गर्दन हिलाते थे और फिर वे घर आ कर महिलाओं को आंदोलन में जाने से रोकते थे। ‘नहीं, नहीं, नहीं! हम इज़्ज़तदार परिवार से हैं, तुम घूँघट डालने वाली महिलाओं हों, तुम आंदोलन में कैसे जाओगी?’ औरतें मुझे बोलती थी कि उनके घर के आदमी उन्हें आंदोलन में आने नहीं दे रहे हैं।”
“तो हम घर-घर जा कर मर्दों को समझाते थे, ‘आज तो तुम्हारी औरतें घूंघट के पीछे हैं, लेकिन कल जब तुम रस्ते पर आ जाओगे, तब तुम्हारी औरतों के घूंघट का क्या होगा? जब उन्हें दूसरों के घरों में बर्तन और कपड़े धोने पड़ेंगे, जब उन्हें रोड़ पर गिट्टी डालनी पड़ेगी, तब तुम्हारी औरतों के सम्मान का क्या होगा? तब उनके घूंघट का क्या होगा?’…तो फिर आदमियों को यह बात समझ में आ जाती थी और इस तरह मैंने औरतों को आंदोलन से जोड़ा। मैंने पूरे निमाड़ में लोगों को आंदोलन से जोड़ा, और वो भी पैदल चलकर। कभी कभी तो में 15 दिन या महीने भर तक घर वापस नहीं आती थी… मैंने अपना शरीर और आत्मा सब इस काम को दे कर यह संगठन बनाया (नर्मदा बचाओ आंदोलन)…तुम संगठन खड़ा करने के काम की मुश्किलों के बारे में सोच भी नहीं सकते; यह आसान काम नहीं है। मैं दिमाग से पूरी तरह थक जाती थी… संगठन के काम में बहुत मेहनत चाहिए…तो इस तरह, एक गांव से दूसरे गांव जाकर हमने इस बड़े आंदोलन को खड़ा किया, निमाड़ में, महाराष्ट्र में, अब तो यह सब जगह फ़ैल गया है और सभी एकजुट हैं, अब उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। लेकिन शुरुआत में, मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी।”
खुद काकी का गांव छोटाबड़ादा, सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में आने वाले 245 गांवो में से एक है और 2017 में बाँध के पूरा होने के बाद, बांध के पानी से बुरी तरह प्रभावित भी हुआ है। काकी नर्मदा बचाओ आंदोलन में शुरुआती दिनों से ही सक्रिय रही हैं और उन्होंने संगठन को खड़ा करने की पूर्णकालिक ज़िम्मेदारी उठायी थी।
काकी का साक्षात्कार आंदोलन के संगठनात्मक कार्य, उसके महत्व और संघर्ष में महिलाओं की भागीदारी के ज़रूरी आयाम पर तो रोशनी डालता ही है, इसके साथ-साथ इसमें नर्मदा बचाओ आंदोलन की छत्रछाया में मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में के एक शक्तिशाली आंदोलन खड़ा करने का इतिहास भी बयां किया गया है। इस साक्षात्कार में, प्रभावित लोगों के लंबे संघर्ष, पुनर्वास निति में ज़मीन के बदले ज़मीन दिए जाने का प्रावधान होने के बावजूद कई लोगों द्वारा नगद मुआवज़ा स्वीकार किये जाने के पीछे के कारणों, आंदोलन की विभिन्न रणनीतियों के प्रभावों और सबसे ज़रूरी, नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक स्थानीय महिला कार्यकर्ता के जीवन का विस्तृत वर्णन मिलता है।
रुकमीकाकी का साक्षात्कार नर्मदा घाटी में महिलाओं को एकजुट करने की इस प्रक्रिया पर रोशनी डालता है और यह महत्व की बात है क्योंकि इससे पहले महिलाओं ने अपने घरों की दहलीज के बाहर आकर इतनी बड़ी संख्या में राजनीतिक और सार्वजनिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लिया था। वे नर्मदा घाटी की महिलाओं को लिंग-आधारित भेदभाव का सामना करने में मदद करने में अपनी भूमिका की चर्चा करती हैं। यह साक्षात्कार विशेष रूप से यह समझने में हमारी मदद करता है कि एक शक्तिशाली आंदोलन खड़ा करने में किस तरह के प्रयासों की आवश्यकता होती है और किस तरह ऐसी महिलाएं जिन्होंने शायद ही कभी अपने घरों और गांव के बाहर कदम रखा था, वे विनाशकारी विकास से अपने रोज़गार की रक्षा करने के लिए खड़े हुए शक्तिशाली संघर्ष की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में लड़ना सीख गई और यहां तक की पुलिस की लाठियों का सामना करने और जेल जाने को भी तैयार हो गई। रुकमीकाकी समझाती हैं कि किस तरह लोगों को एकजुट करना और संघर्ष में उनकी अर्थपूर्ण भागीदारी, विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी किसी भी संघर्ष की सफलता के लिए अहम है, और यह संघर्ष की सबसे मुश्किल चुनौती भी है।
साक्षात्कार की अवधी: 02:20:00
भाषा: हिंदी, सबटाइटल्स अंग्रेज़ी में
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