कैंब्रिज शब्दकोश में मौखिक इतिहास की परिभाषा है, “किसी ऐतिहासिक घटना या काल के बारे में ऐसी जानकारी जो आपको उन लोगों द्वारा बताई गयी हो जिन्होंने उसका अनुभव किया है”।
भारत में मौखिक इतिहास की प्राचीन परंपरा रही है जिसके तहत ज्ञान, जानकारी और इतिहास मौखिक रूप से एक पीढ़ी से आने वाले पीढ़ी को सौंपा जाता है। यह खासकर उन समुदायों में देखा गया है जिनकी भाषाओँ को लिखने के लिए लिपि नहीं है या उन समुदायों में जहाँ साक्षरता दर बहुत ज़्यादा नहीं है। ग्रामीण, आदिवासी और जनजातीय समुदाय अक्सर अपने इतिहास और ज्ञान के संचार के लिए मौखिक शैली अपनाते हैं।
मौखिक इतिहास धीरे-धीरे इतिहास के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण तरीका बनता जा रहा है क्योंकि यह ऐतिहासिक घटनाओं को रिकॉर्ड करने की ऐसी प्रक्रिया है जो सहभागिता पर आधारित है। जैसा कि डॉ. मृदुल हजारिका, गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति ने नवंबर 2017 में ओरल हिस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया के वार्षिक सत्र के दौरान दिए गए अपने भाषण में मौखिक इतिहास के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा था, “आने वाले दिनों में मौखिक इतिहास की विधा इतिहास के अध्ययन में अपना केंद्रीय स्थान ग्रहण करेगी। मौखिक इतिहास उन लोगों की भूमिका को महत्व देता है जो सबसे महत्वहीन दिखाई पड़ते हैं”।
इसी तरह, रोम ला सैपिएन्ज़ा विश्वविद्यालय में एंग्लो-अमेरिकन साहित्य के प्रोफेसर और मौखिक इतिहासकार एलेसेंड्रो पोर्टेली कहते हैं, “आधिकारिक इतिहास पर बढ़ते संदेह के साथ-साथ मौखिक इतिहास का महत्व बढ़ता जा रहा है। मौखिक इतिहास हाशिये के लोगों का इतिहास है। मौखिक इतिहास लोगों की बोल पाने की क्षमता का सम्मान करता है, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है, इसमें लोगों की विरासत पर गर्व किया जाता है और इसके तहत लोगों के रचना और सृजन की क्षमता को मान्यता दी जाती है”।
इसलिए विकास, समता और न्याय के बुनियादी मुद्दों पर जन संघर्षों के इतिहास को दर्ज करने के लिए मौखिक इतिहास सबसे उपयुक्त तरीका है। एक विधि के रूप में मौखिक इतिहास की शक्ति को और हाशिये की अनसुनी आवाज़ों के योगदान के ज़रिये इतिहास के अध्ययन और संकलन का जो अवसर मौखिक इतिहास प्रदान करता है, उसे नर्मदा आंदोलन के इस मौखिक इतिहास में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इस विधि के फायदे और सीमितताओं की अधिक चर्चा कार्यविधि खंड में की गई हैं।